Aashram Review: दमदार कहानी मगर धीमी रफ़्तार फीका कर देती है बॉबी देओल की सीरीज़ को

Saturday, August 29, 2020 16:56 IST
By Santa Banta News Network
निर्देशक: प्रकाश झा

कलाकार: बॉबी देओल, अदिति पोहनकर, चंदन रॉय सान्याल, दर्शन कुमार, अनुप्रिया गोएंका, त्रिधा

रेटिंग: **1/2

प्लेटफार्म: एम एक्स प्लेयर

कुछ दिन पहले ही प्रकाश झा ने फिल्म 'परीक्षा' के ज़रिये फैन्स का दिल जीता था और अब वे लेकर आये हैं अपनी अगली पेशकश 'आश्रम' जो की एमएक्सप्लेयर पर रिलीज़ हो चुकी है | बॉबी देओल स्टारर ये सीरीज़ आस्था के नाम पर मासूम लोगों की भावनाओं से के साथ हो रहे खिलवाड़ के इर्द-गिर्द घूमती दिखती है | इसका ट्रेलर देखकर आपको बाबा राम रहीम की याद ज़रूर जाएगी जो इस समय जेल में अपने कर्मों की सज़ा भुगत रहां हैं| तो आइये जानें आखिर कैसा, माफ़ कीजियेगा कैसी है प्रकाश झा की 'आश्रम'|

इस सीरिज़ की कहानी बाबा निराला (बॉबी देओल) काशीपुर वाले के इर्द-गिर्द घुमती है। इनका एक बड़ा आश्रम है जिसमें लोगों द्वारा दान-धर्म का काम होता है, बाबा के पास स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल और वृद्धा आश्रम जैसी ना जाने कितनी संपति है। इस आश्रम में लोगों को रहने की भी छूट है, बाबा ने राजनितिक पार्टियों के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए हैं जिनका फायदा उठा कर वह समाज सेवा की आड़ में अपने गोरखधंधे चलाता है और बाबा के इस मायाजाल में लोग आसानी से फंसते चले जाते हैं ।

बाबा के आश्रम का प्रबंधन कार्य और उसके सारे काले कारनामों के प्रबंधन भूपेंद्र सिंह (चन्दन रॉय सान्याल) यानी भोपा की देखरेख में होता हैं। कुछ समय बाद एक हाइप्रोफाइल प्रोजेक्ट के दौरान आश्रम से एक कंकाल मिलता है। इस कंकाल की जांच करने का केस जाता है इंस्पेक्टर उजागर सिंह (दर्शन कुमार) को | मामले की जाँच धीरे-धीरे आगे बढ़ती है और हर कड़ि का रहस्य कहीं न कहीं बाबा से जुड़ता नज़र आता है| इस पूरे मामले में क्या बाबा ही असली आरोपी है या नहीं, यह जानने के लिए आपको वेब सीरीज़ देखनी होगी।

इस सीरिज़ को देखकर मन में पहला सवाल ये आता है कि 'गंगाजल' और 'अपहरण' जैसी फ़िल्में बनाने वाले प्रकाश झा इस वेब सीरीज़ में राजनीति, अपराध और करप्शन का तालमेल कैसे नहीं बैठा पाए| कहानी पहले 6 एपिसोड्स तक बेहद धीमी गति से चलती है और उसके बाद कुछ रफ़्तार पकडती है मगर जैसे ही दर्शक सीरीज़ से बंधता है आखिरी एपिसोड ख़त्म हो जाता है |

'क्‍लास ऑफ 83' के बाद बॉबी से एक बार फिर से एक दमदार प्रदर्शन की उम्मीद थी मगर उनका प्रदर्शन यहाँ साधारण ही लगा है | हालांकि उन्हें एक अलग अवतार में देखना मनोरंजक है और बॉबी स्क्रीन पर बाबा के किरदार को एन्जॉय करते भी दिखते हैं मगर उनकी चाल - ढाल और शांत स्वभाव के साथ चालाकी भरी मुस्कान असली नहीं लगती।

इंस्‍पेक्‍टर उजागर सिंह के रूप में दर्शन कुमार अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं | बाबा निराला के राइट हैंड भूपा स्‍वामी का किरदार निभाने वाले चंदन रॉय सान्याल भी अपने अभिनय की छाप छोड़ने में नाकाम हुए हैं| वहीं बात करें अनुप्रिया गोएंका की तो डॉक्‍टर नताशा के किरदार के साथ इन्साफ करने में वे सफल रही हैं | इन सभी के अलावा बाकी किरदार पूरी वेब सीरिज़ में असरहीन नज़र आए हैं|

सीरिज़ के डायलॉग दिलचस्प व मज़ेदार हैं मगर इसकी पटकथा धीमी व कमज़ोर है । इसमें कहीं भी दर्शकों को रोमांच की अनुभूति नहीं हुई है। प्रकाश झा ने फ़र्ज़ी बाबाओं और उनके लाखों - करोड़ों भक्तों के कारण उन्हें मिली ताकत को ज़रूर लोगों के सामने प्रस्तुत किया है परन्तु कहानी को कुछ ज्यदा ही लम्बा खींच दिया है जो की सीरीज़ के बीच में ही इसे उबाऊ बना देता है|

कुल मिलाकर अंत में यही कहा जा सकता है कि सारा असला बारूद होने के प्रकाश झा उसका इस्तेमाल सही से कर पाने में असफल रहे हैं | आश्रम की रफ़्तार बेहद धीमी है और कहानी दमदार होने के बाद भी ये एक औसत सीरीज़ बन कर रह जाती है |
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