भारत में बैन 10 फ़िल्में
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भारत में बैन 10 फ़िल्में
इन दिनों फिल्म 'अनफ़्रीडम' अपनी कहानी और देश में लगे प्रतिन्ध को लेकर चर्चा में है। ने फिल्म पर यह कहते हुए रोक लगा दी है कि फिल्म की कहानी देश की परंपरा के खिलाफ है, जिसके चलते देश में असामाजिकता की स्थिति बढ़ सकती है। वहीं फिल्म की सामग्री को देखते हुए सेन्सर बोर्ड ने भी इसे लाल बत्ती दिखा दी है। चलिए इसकी ही जैसी दूसरी फिल्मों पर नजर डालते हैं जिन्हें भारत में सरकार ने बैन कर दिया था।
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आंधी (1975)
इस फिल्म पर इंद्रागाँधी ने अपने राजयकाल में (आपातकालीन) प्रतिबन्ध लगा दिया था और इसी के चलते फिल्म 1977 में भाजपा के कार्यकाल में रिलीज हुई थी।
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किस्सा कुर्सी का (1977)
राजनीतिक धोखा-धडी से भरपूर इस फिल्म को भी कांग्रेस की तीखी आलोचना मिली थी। इस फिल्म को रिलीज होने की अनुमति देना तो दूर बल्कि इस फिल्म के मास्टर प्रिंट ही संजय गांधी ने सेंसर बोर्ड कार्यालय से निकालकर जला कर राख कर दिए थे। इसके बाद इस फिल्म को अलग कास्ट के साथ दोबारा से बनाया गया।
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बेंडिट क्वीन (1994)
इस फिल्म को दिल्ली उच्च न्यायालय ने अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया था, जिसका कारण था पूनम देवी द्वारा फिल्म की प्रामाणिकता पर सवालियां निशान लगाना।
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कामासूत्रा: ए टेल ऑफ़ लव (1996)
यह फिल्म कामुकता पर आधारित थी और इसे भारत में रिलीज करने की अनुमति फिल्म से न्यूडिटी सीन के काटे जाने के बाद ही मिली।
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फायर (1996)
फिल्म के रिलीज होने के दिन ही कुछ हिंदू कट्टरपंथियों ने उन थियेटरों पर हमला कर दिया था जिन पर इस फिल्म को रिलीज किया गया था। फिल्म की कहने लेस्बियन (समलैंगिकता) पर आधारित कहानी थी। इसके बाद फिल्म को हटा दिया गया और दोबारा से सेंसर बोर्ड के पास भेजा गया। इसके बाद फिल्म दोबारा से रिलीज हुई।
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ब्लैक फ्राइडे (2004)
यह फिल्म 1993 में मुंबई में हुई बमबारी पर आधरित थी। इस फिल्म की रिलीज तब तक के लिए रोक दी गई जब तक फिल्म के खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय में दर्ज मुकदमा अंडर ट्रायल रहा। फिल्म की 28 जनवरी 2005 को होने वाली रिलीज टाल दी गई। हालाँकि फिल्म के निर्माता ने इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय में भी गुहार लगाई लेकिन लेकिन उच्च न्यायालय ने अपने फैंसले को एक दम सही ठहराया। इसके बाद फिल्म को 9 फरवरी 2007 को रिलीज किया गया।
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वॉटर (2005)
इस फिल्म को शूटिंग के समय से ही वाराणसी में हिन्दू संगठनों द्वारा भारी आलोचना झेलनी पड़ी थी। फिल्म के सेट को तोड़-फोड़ दिया गया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकर ने फिल्म को 31 जनवरी 2000 को रुकवा दिया। इसके बाद फिल्म की शूटिंग श्रीलंका में की गई। फिल्म काफी बाद में 2007 में रिलीज हुई।
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मैं हूँ रजनीकांत (2014)
रजनीकांत खुद इस फिल्म के लिए उच्च न्यायाल गए थे, उनका आरोप था कि इस फिल्म में उनके व्यक्तित्व के साथ खिलवाड़ किया गया है। यह उनके व्यक्तिगत अधिकारों का हनन है। इसके बाद फिल्म को स्टे दे दिया गया था और निर्देशकों को कहा गया कि वह रजनीकांत के नाम, तस्वीरें और उनसे जुडी किसी भी सामग्री का प्रयोग नहीं करेंगे। इसके बाद फिल्म के निर्देशक फैजल सैफ ने न सिर्फ फिल्म का नाम बदला ब्लकि उन्हें यह फिल्म भी दिखाई। फिल्म का शीर्षक बदलकर 'मैं हूँ रजनी किया गया'।
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इण्डियाज़ डॉटर (2015)
यह एक डॉक्युमेंट्री फिल्म है, जो दिल्ली में हुए गैंग रैप पर आधारित थी। लेकिन उच्च न्यायाल ने फिल्म की भारत रिलीज पर रोक लगा दी। वहीं भारत में महिलाओं की सुरक्षा पर सवालियां निशान खड़ा करने वाली इस फिल्म को यूट्यूब से भी हटाने के लिए सरकर ने प्रार्थन की थी।
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अनफ्रीडम (2015)
इस फिल्म पर भी सेंसर बोर्ड ने यह कहते हुए प्रतिबन्ध लगा दिया था कि यह फिल्म हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच विरोध पैदा करने वाली है और इस से देश में दोनों समुदायों के बीच असामाजिकता को बढ़ावा मिलेगा। यह फिल्म भी एक जैसे सेक्स संबंधों और धार्मिक कट्टरवाद पर आधारित थी।