गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'; क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना! *गाहे: कभी |
कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद; याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद! |
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर; दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए! |
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा; मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है! |
जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा, हया यकलखत आई, और शबाब आहिस्ता-आहिस्ता! |
सरकता जाये है रुख से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता; निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता-आहिस्ता! |
वो बे-दर्दी से सर काटें और मैं कहूं उनसे; हज़ूृर आहिस्ता-आहिस्ता, जनाब आहिस्ता-आहिस्ता! |