क्या शक्ल है वस्ल में किसी की; तस्वीर हैं अपनी बेबसी की! |
आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास; मेरे ही सीने में उतरे हैं ये ख़ंजर सारे! |
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर; जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ! |
फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना; मगर इस में लगती है मेहनत ज़्यादा! |
कौन कहे मासूम हमारा बचपन था; खेल में भी तो आधा आधा आँगन था! |
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय; नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है! |
यूँ जो तकता है आसमान को तू; कोई रहता है आसमान में क्या! |
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है; चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी! *तुर्बत: क़ब्र |
जाने कितने बे-क़ुसूरों को सज़ाएँ मिल रहीं; झूठ लगता है तुम्हें तो जेल जा कर देखिए! |
रात भी नींद भी कहानी भी; हाए क्या चीज़ है जवानी भी! |