हमेशा पूछती रहती है रास्तों की हवा; यूँ ही रुके हो यहाँ या किसी ने रोका था! |
अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फैंसला; जिस दिये में जान होगी वो दिया रह जायेगा! |
ऐ ख़ुदा कैसा समय आया है; शहर में हर सू धुआँ छाया है! *सू - दिशा, तरफ |
सफर का शौक न मंजिल की जुस्तुजू बाक़ी; मुसाफिरों के बदन में नहीं लहू बाक़ी! |
ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ताबीर में है; मुझ को मालूम है जो कुछ मेरी तक़दीर में है! |
ऐसा न हो गुनाह की दलदल में जा फँसूँ; ऐ मेरी आरज़ू मुझे ले चल सँभाल के! |
मुस्कुराने की सज़ा कितनी कड़ी होती है; पूछ आओ ये किसी खिलती कली से पहले! |
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं; तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं! |
लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए; कैसे मुमकिन है अंधेरों को उजाला कहिए! |
रफ़्ता रफ़्ता चीख़ना आराम हो जाने के बाद; डूब जाना फिर निकलना शाम हो जाने के बाद! |