कोई कैसा ही साबित हो तबीयत आ ही जाती है; ख़ुदा जाने ये क्या आफ़त है आफ़त आ ही जाती है! *तबीयत: स्वभाव |
ज़रा सा जोश क्या दरिया में आया; समंदर की बुराई कर रहा है! |
पुकार लेंगे उस को इतना आसरा तो चाहिए; दुआ ख़िलाफ़-ए-वज़अ है मगर ख़ुदा तो चाहिए! *ख़िलाफ़-ए-वज़अ - परंपरा के विपरीत |
ख़ुदा उसे भी किसी दिन ज़वाल देता है; ज़माना जिस के हुनर की मिसाल देता है! * ज़वाल - पतन |
दौर काग़जी था पर देर तक ख़तों में जज़्बात महफ़ूज़ रहते थे; अब मशीनी दौर है उम्र भर की यादें ऊँगली से ही डिलीट हो जाती हैं। |
देखूँ तो जुर्म और न देखूँ तो कुफ़्र है; अब क्या कहूँ जमाल-ए-रुख़-ए-फ़ित्नागर को मैं! |
ये ज़मीं आसमान रहने दे; कोई तो साएबान रहने दे! * साएबान - शामियाना |
फूल हँसे और शबनम रोई आई सबा मुस्काई धूप; याद का सूरज ज़ेहन में चमका पलकों पर लहराई धूप! |
कब खुलेगा कि फलक पार से आगे क्या है; किस को मालूम कि दीवार से आगे क्या है! |
मेरी हवस के अंदरूँ महरूमियाँ हैं दोस्त; वामाँदा-ए-बहार हूँ घटिया कहे सो हूँ! *महरूमियाँ - deprivation *वामाँदा-ए-बहार - fatigued of spring |