अन्य Hindi Shayari

  • कोई कैसा ही साबित हो तबीयत आ ही जाती है;<br/>
ख़ुदा जाने ये क्या आफ़त है आफ़त आ ही जाती है!<br/><br/>
*तबीयत: स्वभावUpload to Facebook
    कोई कैसा ही साबित हो तबीयत आ ही जाती है;
    ख़ुदा जाने ये क्या आफ़त है आफ़त आ ही जाती है!

    *तबीयत: स्वभाव
    ~ Qalaq Merathi
  • ज़रा सा जोश क्या दरिया में आया;<br/>
समंदर की बुराई कर रहा है!Upload to Facebook
    ज़रा सा जोश क्या दरिया में आया;
    समंदर की बुराई कर रहा है!
    ~ Naeem Akhtar Khadimi
  • पुकार लेंगे उस को इतना आसरा तो चाहिए;<br/>
दुआ ख़िलाफ़-ए-वज़अ है मगर ख़ुदा तो चाहिए!<br/>

*ख़िलाफ़-ए-वज़अ - परंपरा के विपरीतUpload to Facebook
    पुकार लेंगे उस को इतना आसरा तो चाहिए;
    दुआ ख़िलाफ़-ए-वज़अ है मगर ख़ुदा तो चाहिए!
    *ख़िलाफ़-ए-वज़अ - परंपरा के विपरीत
    ~ Raees Faraz
  • ख़ुदा उसे भी किसी दिन ज़वाल देता है;<br/>
ज़माना जिस के हुनर की मिसाल देता है!<br/><br/>

* ज़वाल - पतनUpload to Facebook
    ख़ुदा उसे भी किसी दिन ज़वाल देता है;
    ज़माना जिस के हुनर की मिसाल देता है!

    * ज़वाल - पतन
    ~ Ejaz Ansari
  • दौर काग़जी था पर देर तक ख़तों में जज़्बात महफ़ूज़ रहते थे;<br/>
अब मशीनी दौर है उम्र भर की यादें ऊँगली से ही डिलीट हो जाती हैं।Upload to Facebook
    दौर काग़जी था पर देर तक ख़तों में जज़्बात महफ़ूज़ रहते थे;
    अब मशीनी दौर है उम्र भर की यादें ऊँगली से ही डिलीट हो जाती हैं।
  • देखूँ तो जुर्म और न देखूँ तो कुफ़्र है;<br/>
अब क्या कहूँ जमाल-ए-रुख़-ए-फ़ित्नागर को मैं!Upload to Facebook
    देखूँ तो जुर्म और न देखूँ तो कुफ़्र है;
    अब क्या कहूँ जमाल-ए-रुख़-ए-फ़ित्नागर को मैं!
  • ये ज़मीं आसमान रहने दे;<br/>
कोई तो साएबान रहने दे!<br/><br/>

* साएबान - शामियाना  Upload to Facebook
    ये ज़मीं आसमान रहने दे;
    कोई तो साएबान रहने दे!

    * साएबान - शामियाना
    ~ Om Prakash Meghwanshi
  • फूल हँसे और शबनम रोई आई सबा मुस्काई धूप; <br/>
याद का सूरज ज़ेहन में चमका पलकों पर लहराई धूप!Upload to Facebook
    फूल हँसे और शबनम रोई आई सबा मुस्काई धूप;
    याद का सूरज ज़ेहन में चमका पलकों पर लहराई धूप!
    ~ Kaif Azimabadi
  • कब खुलेगा कि फलक पार से आगे क्या है;<br/>
किस को मालूम कि दीवार से आगे क्या है!Upload to Facebook
    कब खुलेगा कि फलक पार से आगे क्या है;
    किस को मालूम कि दीवार से आगे क्या है!
    ~ Tabish Kamal
  • मेरी हवस के अंदरूँ महरूमियाँ हैं दोस्त;<br/>
वामाँदा-ए-बहार हूँ घटिया कहे सो हूँ!<br/><br/>

*महरूमियाँ - deprivation<br/>
*वामाँदा-ए-बहार - fatigued of springUpload to Facebook
    मेरी हवस के अंदरूँ महरूमियाँ हैं दोस्त;
    वामाँदा-ए-बहार हूँ घटिया कहे सो हूँ!

    *महरूमियाँ - deprivation
    *वामाँदा-ए-बहार - fatigued of spring
    ~ Danish Nazeer Dani