किसी को क्या ख़बर ऐ सुब्ह वक़्त-ए-शाम क्या होगा; ख़ुदा जाने तेरे आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा! |
दिल है क़दमों पर किसी के सिर झुका हो या न हो; बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो! |
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था; हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते! |
काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें; फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें! |
चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है; अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है! |
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई; हम न सोए रात थक कर सो गई! |
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा; सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए! |
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे; हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे! |
धोखा था निगाहों का मगर ख़ूब था धोखा; मुझ को तेरी नज़रों में मोहब्बत नज़र आई! |
मेरी आँखें और दीदार आप का; या क़यामत आ गई या ख़्वाब है! |