हर एक रात को महताब देखने के लिए; मैं जागता हूँ तेरा ख़्वाब देखने के लिए! *महताब: चाँद |
ज़ुबान दिल की हक़ीक़त को क्या बयाँ करती; किसी का हाल किसी से कहा नहीं जाता! |
इश्क़ को एक उम्र चाहिए और; उम्र का कोई ऐतबार नहीं! |
जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें; ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही! |
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी; तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी! |
इश्क़ में कौन बता सकता है; किस ने किस से सच बोला है! |
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे; जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे! *रंज: दुख |
क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है; अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है! *हिज्र: जुदाई, वियोग, विछोह, विरह |
हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थीं; ये हादसा है कि हम तेरे पास आ पहुँचे! |
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो; बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो! * महताब: चाँद |