ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है; वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है। |
बंद आँखें करूँ और ख़्वाब तुम्हारे देखूँ; तपती गर्मी में भी वादी के नज़ारे देखूँ! |
आने वाली है क्या बला सिर पर; आज फिर दिल में दर्द है कम कम! |
देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर; हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर! |
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है; वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो! |
मेरे बारे में कुछ सोचो मुझे नींद आ रही है, मुझे जाया न होने दो मुझे नींद आ रही है; मेरे अंदर के दुख चेहरे से ज़ाहिर हो रहे हैं, मेरी तस्वीर मत खींचो मुझे नींद आ रही है! *जाया: गंवाना, बेकार करना |
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू; जाता कहाँ है शमा को परवाना छोड़ कर! *शमा: मोमबत्ती |
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मालूम; जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई! |
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की, सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं; सुना है उस को भी है शेर-ओ-शायरी से शग़फ़, सो हम भी मोजिज़े अपने हुनर के देखते हैं! |
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे, जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे; शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं, मेरे बुझने का नज़ारा करने आ जाते होंगे! |