सिले हों लब ज़बानें बंद तो बातें नहीं होतीं; मुख़ालिफ़ रास्ते हों तो मुलाक़ातें नहीं होतीं! |
पाँव का ध्यान तो है राह का डर कोई नहीं; मुझ को लगता है मेरा ज़ाद-ए-सफ़र कोई नहीं! |
अब ज़िंदगी का कोई सहारा नहीं रहा; सब ग़ैर हैं कोई भी हमारा नहीं रहा! |
मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा; दिल तोड़ना कठिन था मगर तोड़ना पड़ा! |
तुम्हीं बताओ कि अब और तुम से क्या माँगूँ; ये दर्द-ए-दिल जो दिया है मुझे वो क्या कम है! |
ना मेरी ज़ख़्म पर रखो मरहम; मेरे क़ातिल की ये निशानी है! |
कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए; तमाम उम्र गुज़ारी हवा से लड़ते हुए! |
हवा से उजड़ कर बिखर क्यों गए; वो पत्ते जो सरसब्ज़ शाख़ों पे थे! *सरसब्ज़ - उत्पादक |
दर्द अब दिल की दवा हो जैसे; ज़िंदगी एक सज़ा हो जैसे! |
कितना दुश्वार है जज़्बों की तिजारत करना; एक ही शख़्स से दो बार मोहब्बत करना! *दुश्वार-कठिन |