मुस्तकिल अब बुझा बुझा सा है; आखिर इस दिल को ये हुआ क्या है! |
मुझे दिल कि ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता; पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता! |
न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा; वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं! |
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो; इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो! |
जो दिल पर बोझ है यारब ज़रा भी कम नहीं होता; ज़माना ग़म तो देता है शरीक-ए-ग़म नहीं होता! |
मैं अपनों को मिलने से कतराता हूँ; एक और नए धोखे से घबराता हूँ! |
एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी; एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया! |
न जख्म भरे, न शराब सहारा हुई; न वो वापस लौटी न मोहब्बत दोबारा हुई! |
भीड़ में भी तन्हा रहना मुझको सिखा दिया, तेरी मोहब्बत ने दुनिया को झूठा कहना सिखा दिया; किसी दर्द या ख़ुशी का एहसास नहीं है अब तो, सब कुछ ज़िन्दगी ने चुप-चाप सहना सिखा दिया! |
परेशान करते थे मेरे सवाल तुमको; तो बताओ पसंद आई खामोशी मेरी! |