Hindi Shayari

  • चार दिन की ज़िन्दगी,<br />
मैं किस से कतरा के चलूँ, <br />
ख़ाक़ हूँ, मैं ख़ाक़ पर,<br />
क्या ख़ाक़ इतरा के चलूँ! <br />Upload to Facebook
    चार दिन की ज़िन्दगी,
    मैं किस से कतरा के चलूँ,
    ख़ाक़ हूँ, मैं ख़ाक़ पर,
    क्या ख़ाक़ इतरा के चलूँ!
  • धूप की गरमी से ईंटें पक गयीं फल पक गए;</br>
एक हमारा जिस्म था 'अख़्तर' जो कच्चा रह गया!Upload to Facebook
    धूप की गरमी से ईंटें पक गयीं फल पक गए;
    एक हमारा जिस्म था 'अख़्तर' जो कच्चा रह गया!
  • क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है;</br>
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है!</br>
*ख़ाक-नशीनों: तपस्वीUpload to Facebook
    क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है;
    हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है!
    *ख़ाक-नशीनों: तपस्वी
    ~ Jigar Moradabadi
  • बंद आँखें करूँ और ख़्वाब तुम्हारे देखूँ;</br>
तपती गर्मी में भी वादी के नज़ारे देखूँ!Upload to Facebook
    बंद आँखें करूँ और ख़्वाब तुम्हारे देखूँ;
    तपती गर्मी में भी वादी के नज़ारे देखूँ!
    ~ Sahiba Sheheryar
  • रात को रोज़ डूब जाता है;</br>
चाँद को तैरना सिखाना है!Upload to Facebook
    रात को रोज़ डूब जाता है;
    चाँद को तैरना सिखाना है!
    ~ Bedil Haidri
  • आने वाली है क्या बला सिर पर;</br>
आज फिर दिल में दर्द है कम कम!Upload to Facebook
    आने वाली है क्या बला सिर पर;
    आज फिर दिल में दर्द है कम कम!
    ~ Josh Malsiani
  • देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर;</br>
हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर!Upload to Facebook
    देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर;
    हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर!
    ~ Mushafi Ghulam Hamdani
  • तुझ से बिछड़ना कोई नया हादसा नहीं;</br>
ऐसे हज़ारों क़िस्से हमारी ख़बर में हैं!Upload to Facebook
    तुझ से बिछड़ना कोई नया हादसा नहीं;
    ऐसे हज़ारों क़िस्से हमारी ख़बर में हैं!
    ~ Aashufta Changezi
  • ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर;</br>
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है!Upload to Facebook
    ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर;
    आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है!
    ~ Fani Badayuni
  • सिर्फ़ एक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में;</br>
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही!Upload to Facebook
    सिर्फ़ एक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में;
    मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही!
    ~ Abdul Hameed Adam