ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं, वफ़ा-दारी का दावा क्यों करें हम; वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत, अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम! *इख़्लास: सच्चा और निष्कपट प्रेम |
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो; साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो! |
दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो; हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले! |
मुद्दतों बाद, लौटे है तेरे शहर में, एक तुझे छोड़, कुछ भी तो नहीं बदला ! |
हम तो बचपन में भी अकेले थे; सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे! |
किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे; हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके! |
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था, सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है; ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़, वो तेरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है! |
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है; वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो! |
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को; मैं देखता रहा दरिया तेरी रवानी को! |
तो क्या सारे गिले-शिकवे अभी कर लोगे मुझ से, कुछ अब कल के लिए रखो मुझे नींद आ रही है; सहर होगी तो देखेंगे कि हैं क्या क्या मसाइल, ज़रा सी देर सोने दो मुझे नींद आ रही है! *मसाइल: समस्याएँ |