ये ज़मीं आसमान रहने दे; कोई तो साएबान रहने दे! * साएबान - शामियाना |
अपनी ख़ुद्दारी तो पामाल नहीं कर सकते; उस का नंबर है मगर काल नहीं कर सकते! |
मैं बाज़गश्त-ए-दिल हूँ पैहम शिकस्त-ए-दिल हूँ; वो आज़मा रहा हूँ जो आज़मा चुका हूँ! |
साज़-ए-फ़ुर्क़त पे ग़ज़ल गाओ कि कुछ रात कटे; प्यार की रस्म को चमकाओ कि कुछ रात कटे! |
तुझ से बिछड़ के दर्द तेरा हम-सफ़र रहा; मैं राह-ए-आरज़ू में अकेला कभी न था! |
इक उम्र हुई और मैं अपने से जुदा हूँ; ख़ुशबू की तरह ख़ुद को सदा ढूँड रहा हूँ! |
हिजाब उठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं; शरीक-ए-इश्क़ कहीं कोई आरज़ू तो नहीं! |
मेरी दुआओं की सब नग़्मगी तमाम हुई; सहर तो हो न सकी और फिर से शाम हुई! * नग़्मगी - गीतकारी |
खिड़की से महताब न देखो; ऐसे भी तुम ख़्वाब न देखो! |
दिल से जब लौ लगी नहीं होती; आँख भी शबनमी नहीं होती! |