भूल जाना था तो फिर अपना बनाया क्यूँ था; तुम ने उल्फत का यकीं मुझ को दिलाया क्यूँ था |
कब खुलेगा कि फलक पार से आगे क्या है; किस को मालूम कि दीवार से आगे क्या है! |
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत;
दिल की घनी बस्ती में यारो आन बसे हैं चोर बहुत! |
मुझ से कहते हो क्या कहेंगे आप; जो कहूँगा तो क्या सुनेंगे आप! |
धूप रुख़्सत हुई शाम आई सितारा चमका; गर्द जब बैठ गई नाम तुम्हारा चमका! |
ख़ुदा को भूले न जब तक हमें ख़ुदा न मिला; ये मुद्दआ' भी ब-जुज़ तर्क-ए-मुद्दआ न मिला! |
दानिस्ता हम ने अपने सभी गम छुपा लिए; पूछा किसी ने हाल तो बस मुस्कुरा दिए! |
इकरार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन; हो जाएगी अब आप से तकरार किसी दिन! |
पिछले सफ़र का अक्स-ए-जियाँ मेरे सामने; सब बस्तियाँ धुआँ ही धुआँ मेरे सामने! |
मेरी हवस के अंदरूँ महरूमियाँ हैं दोस्त; वामाँदा-ए-बहार हूँ घटिया कहे सो हूँ! *महरूमियाँ - deprivation *वामाँदा-ए-बहार - fatigued of spring |