हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए; हम नज़र तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए! |
माना कि ज़लज़ला था यहाँ कम बहुत ही कम; बस्ती में बच गए थे मकाँ कम बहुत ही कम! |
ग़ुंचे-ग़ुंचे पे गुलिस्ताँ के निखार आ जाए; जिस तरफ़ से वो गुज़र जाएँ बहार आ जाए ! |
सजा रहेगा अँधेरों से ही खंडर मेरा; इक एक कर के हुआ ख़त्म अब सफ़र मेरा! |
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा; कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा! |
बे-सबब हम से जुदाई न करो; मुझ से आशिक़ से बुराई न करो ! |
ये हादसा है मगर उस तरफ हुआ भी नहीं; जुदा हुआ भी तो उस से जो जानता भी नहीं! |
मुस्तकिल अब बुझा बुझा सा है; आखिर इस दिल को ये हुआ क्या है! |
अब चल पड़ा हूँ आखिरी अपने सफ़र को मैं; अच्छा है सीधा कर लूँ जो अपनी कमर को मैं! |
मुमकिन नहीं है अपने को रुसवा वफ़ा करे; दुनिया-ए-बे-सबात की ख़ातिर दुआ करे! |