नहीं निग़ाह में मंज़िल तो जुस्त-जू ही सही; नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही! |
मेरे ग़ुज़रे हुये तेवर अभी भूली नहीं दुनिया; अभी बिख़री हुयी हैं हर तरफ़ परछाइयाँ मेरी! |
वो बे-दर्दी से सर काटें और मैं कहूं उनसे; हज़ूृर आहिस्ता-आहिस्ता, जनाब आहिस्ता-आहिस्ता! |
अब भी लोगों के दिल में ख़र की सूरत खटकता हूँ; अभी तक याद है अहल-ए-चमन को दास्तां मेरी! |
है आशिक़ी में रस्म, अलग सब से बैठना; बुत ख़ाना भी, हरम भी, कलीसा भी छोड़ दे! |
ग़ुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ; वाक़िफ़ सभी थे पहचानता कोई न था! |
गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद; यहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है! ज़ाहिद = धार्मिक व्यक्ति |
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ, तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ, तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन, तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ! |
किसी से जुदा होना इतना आसान होता तो, जिस्म से रूह को लेने फ़रिश्ते नहीं आते। |
आशिक़ था एक मेरे अंदर, कुछ साल पहले गुज़र गया; अब कोई शायर सा है, अज़ीब-अज़ीब सी बातें करता है! |