कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर; अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा। |
मुझे कुछ अफ़सोस नहीं कि मेरे पास सब कुछ होना चाहिए था; मैं उस वक़्त भी मुस्कुराता था जब मुझे रोना चाहिए था। |
उलझी शाम को पाने की ज़िद न करो; जो ना हो अपना उसे अपनाने की ज़िद न करो; इस समंदर में तूफ़ान बहुत आते हैं; इसके साहिल पर घर बनाने की ज़िद न करो। |
होंठो ने तेरा ज़िक्र न किया पर मेरी आँखें तुम्हें पैग़ाम देती हैं; हम दुनियाँ से तुम्हें छुपाएँ कैसे, मेरी हर शायरी तेरा ही नाम लेती है। |
नाम उसका मेरी जुबान पर आते-आते रुक जाता है; जब कोई मुझसे मेरी आखिरी ख्वाहिश पूछता है! |
जिंदा-दिल रहिए जनाब, ये चेहरे पे उदासी कैसी; वक्त तो बीत ही रहा है, उम्र की एेसी की तैसी! |
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में; तुम झूठ कह रहे थे मुझे ऐतबार था! |
स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर हैं हम भी, बहुत मशहूर हो तुम भी, बहुत मशहूर हैं हम भी; बड़े मगरूर हो तुम भी, बड़े मगरूर हैं हम भी, अत: मज़बूर हो तुम भी, अत: मज़बूर हैं हम भी! |
सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सिर ना मार; तुझ से क्या बहलेंगे तूफानों के बहलाए हुए! |
अब वो मिलते भी हैं तो यूँ कि कभी; गोया हमसे कुछ वास्ता न था! |