ऐ क़लम बस इतना सा एहसान कर दे; जो मेरी ज़ुबाँ से न निकला वो बयाँ कर दे। |
उम्र में, ओहदे में, कौन कितना बड़ा है फर्क नहीं पड़ता; लहजे में कौन कितना झुकता है फर्क ये पड़ता है। |
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती; बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती। |
अरबाबे-सितम की खिदमत में इतनी ही गुजारिश है मेरी; दुनिया से कयामत दूर सही, दुनिया की कयामत दूर नहीं। Meaning: अरबाबे-सितम = सितम ढाने वाला |
दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं; लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते हैं। |
दिल ना-उम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है; लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है। |
दिल समझता था कि ख़ल्वत में वो तन्हा होंगे; मैंने पर्दा जो उठाया तो क़यामत निकली। Meaning: खल्वत = एकांत |
फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है; ये दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है; अभी भी आते हैं आँसू मेरी कहानी में; कलम में शुक्र-ए- खुदा है कि 'रौशनाई' है| |
बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में; वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में| |
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से; लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से। |