ज़िंदगी निकली मुसलसल इम्तिहाँ-दर-इम्तिहाँ; ज़िंदगी को दास्ताँ ही दास्ताँ समझा था मैं! Meaning: मुसलसल - लगातार, निरंतर |
यूँ चेहरे पर उदासी ना ओढिये साहब; वक़्त ज़रूर तकलीफ का है लेकिन कटेगा मुस्कुराने से ही। |
ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है; ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ ज़ख्मों का मरहम है; अजब सी कशमकश है, रोज़ जीने, रोज़ मरने में; मुक्कमल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है। |
छोटा कर के देखिए जीवन का विस्तार; आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार। |
तुम्हारी एक निगाह से कतल होते हैं लोग फ़राज़; एक नज़र हम को भी देख लो कि तुम बिन ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती। |
आँखों में पानी रखो, होंठो पे चिंगारी रखो; जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो; राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें; रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो। |
वो दरिया ही नहीं जिसमे नहीं रवानी; जब जोश ही नहीं तो फिर किस काम की है जवानी। |
'सुकून' की बात मत कर ऐ ग़ालिब; बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता। |
उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले; गो दब गए हैं बार-ए-गम-ए-जिन्दगी से हम। अर्थ: वलवले - उत्साह, हौंसला, उम्मीद बारे - बोझ, भार, वजन |
ऐ ज़िंदगी काश तू ही रूठ जाती मुझ से; ये रूठे हुए लोग मुझ से मनाये नहीं जाते! |