कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी; सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी! |
है कितना बदनसीब 'ज़फ़र' दफ़्त के लिए; दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में! |
अजनबी शहर में जब पीछे से पत्थर लगा हमें; तो ज़ख्म भी चीख उठा लो यहां भी अपने मौजूद हैं! |
अगर सलीके से तोड़ते तुम मुझे; मेरे टुकड़े भी तुम्हारे काम आते! |
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है; हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है! |
हम अपना दर्द किसी को कहते नही, वो सोचते हैं कि हम तन्हाई सहते नहीं; आँखों से आँसू निकले भी तो कैसे, क्योंकि सूखे हुए दरिया कभी बहते नहीं। |
आलम ए बेक़रारी बता रहे हो; जाने क्या बात हुई कभी मोहब्बत तो कभी ख़ुशी लुटा रहे हो! |
बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर; वो ज़िंदगी है जो काँटों के दरमियाँ गुज़रे! |
कभी आँसू तो कभी खुशी देखी, हमने अक्सर मजबूरी और बेबसी देखी; उनकी नाराजगी को हम क्या समझें, हमने खुद की तकदीर की बेबसी देखी! |
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ; उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की! |