ज़िंदगी में कामयाबी की मंज़िल के लिए ख़्वाब ज़रूरी है; और ख़्वाब देखने के लिए नींद; तो अपनी मंज़िल की पहली सीढ़ी चढ़ो; और सो जाओ! शुभरात्रि! |
बहारों का समय होता है आपके आने से; फूल खिलते हैं आपकी आहट से; ज्यादा मत सोईए जनाब; क्योंकि हर सुबह होती है आपके मुस्कुराने से। सुप्रभात! |
यह कोई सोने का वक़्त है? जब देखो सोते रहते हो? क्या सारी ज़िंदगी सो-सो के बितानी है? और हां जाग जाओ तो शोर मत करना, हम सो रहे हैं! शुभरात्रि! |
नींद तो आने को थी; पर दिल पिछले क़िस्से ले बैठा; वही तन्हाई वही आवारगी; वही उसकी यादें और वही सुबह। शुभरात्रि! |
फूलों की वादियों में हो बसेरा आपका; सितारों के आँगन में हो सवेरा आपका; दुआ है एक दोस्त की दोस्त के लिए; हमसे भी खूबसूरत हो नसीब आपका। सुप्रभात! |
लफ़्ज़ों की तरह दिल की किताबों में मिलेंगे; या बनकर महक गुलाबों में मिलेंगे; मिलने के लिए ए दोस्त ठीक से सोना; आज रात हम आप को ख़्वाबों में मिलेंगे। |
पिता जिसका था हिन्द की चादर; आप बना वो रक्षक निमानों का; खिड़े माथे जिसने सरबंस वार दिया; वो है गुरु बलिदानियों का; जिसका जीवन था देश और कौम के नाम; यह है साका उसकी कुर्बानियों का। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के गुरपुरब की मंगल कामनाएं! |
आकाश के तारों में खोया है जहां सारा; लगता है प्यारा एक-एक तारा; उन तारों में सबसे प्यारा है एक सितारा; जो इस वक़्त पढ़ रहा है संदेश हमारा। शुभरात्रि! |
रात काफी हो चुकी है; अब चिराग़ बुझा दीजिए; एक हसीं ख़्वाब राह देख रहा है आपका; बस पलकों के पर्दे गिरा दीजिए। शुभरात्रि! |
चाँद को बिठा के पहरे पे; तारों को दिया निगरानी का काम; एक रात सुहानी आपके लिए; एक मीठा सा सपना आपकी आँखों के नाम। शुभरात्रि! |