कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल के; वो बदल गए अचानक, मेरी ज़िन्दगी बदल के; हुए जिस पे मेहरबाँ, तुम कोई ख़ुशनसीब होगा; मेरी हसरतें तो निकलीं, मेरे आँसूओं में ढल के; तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के, क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है; वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधल के; कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा; जो चिराग़ बुझ गए हैं, तेरी अंजुमन में जल के; मेरे दोस्तो ख़ुदारा, मेरे साथ तुम भी ढूँढो; वो यहीं कहीं छुपे हैं, मेरे ग़म का रुख़ बदल के; तेरी बेझिझक हँसी से, न किसी का दिल हो मैला; ये नगर है आईनों का, यहाँ साँस ले संभल के। |
जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा... जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा; बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा; डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती; दिल में तूफ़ान-ए-इजि़्तराब उठा; मरने वाले फ़ना भी पर्दा है; उठ सके गर तो ये हिजाब उठा; हम तो आँखों का नूर खो बैठे; उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा; आलम-ए-हुस्न-ए-सादगी तौबा; इश्क़ खा खा के पेच-ओ-ताब उठा; होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ 'एहसान'; ला उठा शीशा-ए-शराब उठा। |
यूं न मिल मुझ से ... यूं न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे; साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे; लोग यूं देख के हंस देते हैं; तू मुझे भूल गया हो जैसे; इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा; यूं न छुप हम से ख़ुदा हो जैसे; मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ; मुझ पे अहसान किया हो जैसे। |
हुए जिस पे मेहरबां तुम, कोई खुशनसीब होगा; मेरी हसरतें तो निकली, मेरे आंसुओं में ढल के। |
मैं खुद पहल करूँ या उधर से हो इब्तिदा; बरसों गुज़र गए हैं यही सोचते हुए। |
बीते हुए कुछ दिन ऐसे हैं; तन्हाई जिन्हें दोहराती है; रो-रो के गुजरती हैं रातें; आंखों में सहर हो जाती है! |