अन्य Hindi Shayari

  • सफर का शौक न मंजिल की जुस्तुजू बाक़ी;<br/>
मुसाफिरों के बदन में नहीं लहू बाक़ी!Upload to Facebook
    सफर का शौक न मंजिल की जुस्तुजू बाक़ी;
    मुसाफिरों के बदन में नहीं लहू बाक़ी!
    ~ Aabid Adeeb
  • ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ताबीर में है;<br/>
मुझ को मालूम है जो कुछ मेरी तक़दीर में है!Upload to Facebook
    ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ताबीर में है;
    मुझ को मालूम है जो कुछ मेरी तक़दीर में है!
    ~ Urooj Zaidi Badayuni
  • ऐसा न हो गुनाह की दलदल में जा फँसूँ;<br/>
ऐ मेरी आरज़ू मुझे ले चल सँभाल के!Upload to Facebook
    ऐसा न हो गुनाह की दलदल में जा फँसूँ;
    ऐ मेरी आरज़ू मुझे ले चल सँभाल के!
    ~ Krishn Bihari Noor
  • मुस्कुराने की सज़ा कितनी कड़ी होती है;<br/>
पूछ आओ ये किसी खिलती कली से पहले!Upload to Facebook
    मुस्कुराने की सज़ा कितनी कड़ी होती है;
    पूछ आओ ये किसी खिलती कली से पहले!
    ~ Parveen Sajal
  • किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं;<br/>
तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं!Upload to Facebook
    किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं;
    तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं!
    ~ Iftikhar Mughal
  • लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए;<br/>
कैसे मुमकिन है अंधेरों को उजाला कहिए!Upload to Facebook
    लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए;
    कैसे मुमकिन है अंधेरों को उजाला कहिए!
    ~ Faiz Ul Hasan Khayal
  • रफ़्ता रफ़्ता चीख़ना आराम हो जाने के बाद;<br/>
डूब जाना फिर निकलना शाम हो जाने के बाद!Upload to Facebook
    रफ़्ता रफ़्ता चीख़ना आराम हो जाने के बाद;
    डूब जाना फिर निकलना शाम हो जाने के बाद!
    ~ Parnav Mishra Tejas
  • कोई कैसा ही साबित हो तबीयत आ ही जाती है;<br/>
ख़ुदा जाने ये क्या आफ़त है आफ़त आ ही जाती है!<br/><br/>
*तबीयत: स्वभावUpload to Facebook
    कोई कैसा ही साबित हो तबीयत आ ही जाती है;
    ख़ुदा जाने ये क्या आफ़त है आफ़त आ ही जाती है!

    *तबीयत: स्वभाव
    ~ Qalaq Merathi
  • ज़रा सा जोश क्या दरिया में आया;<br/>
समंदर की बुराई कर रहा है!Upload to Facebook
    ज़रा सा जोश क्या दरिया में आया;
    समंदर की बुराई कर रहा है!
    ~ Naeem Akhtar Khadimi
  • पुकार लेंगे उस को इतना आसरा तो चाहिए;<br/>
दुआ ख़िलाफ़-ए-वज़अ है मगर ख़ुदा तो चाहिए!<br/>

*ख़िलाफ़-ए-वज़अ - परंपरा के विपरीतUpload to Facebook
    पुकार लेंगे उस को इतना आसरा तो चाहिए;
    दुआ ख़िलाफ़-ए-वज़अ है मगर ख़ुदा तो चाहिए!
    *ख़िलाफ़-ए-वज़अ - परंपरा के विपरीत
    ~ Raees Faraz