सफर का शौक न मंजिल की जुस्तुजू बाक़ी; मुसाफिरों के बदन में नहीं लहू बाक़ी! |
ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ताबीर में है; मुझ को मालूम है जो कुछ मेरी तक़दीर में है! |
ऐसा न हो गुनाह की दलदल में जा फँसूँ; ऐ मेरी आरज़ू मुझे ले चल सँभाल के! |
मुस्कुराने की सज़ा कितनी कड़ी होती है; पूछ आओ ये किसी खिलती कली से पहले! |
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं; तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं! |
लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए; कैसे मुमकिन है अंधेरों को उजाला कहिए! |
रफ़्ता रफ़्ता चीख़ना आराम हो जाने के बाद; डूब जाना फिर निकलना शाम हो जाने के बाद! |
कोई कैसा ही साबित हो तबीयत आ ही जाती है; ख़ुदा जाने ये क्या आफ़त है आफ़त आ ही जाती है! *तबीयत: स्वभाव |
ज़रा सा जोश क्या दरिया में आया; समंदर की बुराई कर रहा है! |
पुकार लेंगे उस को इतना आसरा तो चाहिए; दुआ ख़िलाफ़-ए-वज़अ है मगर ख़ुदा तो चाहिए! *ख़िलाफ़-ए-वज़अ - परंपरा के विपरीत |