फूलों की याद आती है काँटों को छूने पर; रिश्तों की समझ आती है फासलों पे रहने पर; कुछ जज़्बात ऐसे भी होते हैं जो आँखों से बयां नहीं होते; वो तो महसूस होते हैं ज़ुबान से कहने पर। |
तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ; ज़िंदगी अपनी तेरी चाहत में सवार लूँ; मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी; सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ। |
अब आएं या न आएं इधर पूछते चलो; क्या चाहती है उनकी नज़र पूछते चलो; हम से अगर है तर्क-ए-ताल्लुक तो क्या हुआ; यारो कोई तो उनकी ख़बर पूछते चलो। शब्दार्थ: तर्क-ए-ताल्लुक = टूटा हुआ रिश्ता |
फ़िज़ा में महकती शाम हो तुम; प्यार में झलकता जाम हो तुम; सीने में छुपाये फिरते हैं चाहत तुम्हारी; तभी तो मेरी ज़िंदगी का दूसरा नाम हो तुम। |
अगर मैं हद से गुज़र जाऊं तो मुझे माफ़ करना; तेरे दिल में उतर जाऊं तो मुझे माफ़ करना; रात में तुझे तेरे दीदार की खातिर; अगर मैं सब कुछ भूल जाऊं तो मुझे माफ़ करना। |
कुछ पल के लिए हमें अपनी बाहों में सुला दो; अगर आँखें खुली तो उठा देना ना खुली तो दफना देना। |
किसी की खातिर मोहब्बत की इन्तहा कर दो; लेकिन इतना भी नहीं कि उसको खुदा कर दो; मत चाहो किसी को टूट कर इस कदर; कि अपनी ही वफाओं से उसको बेवफा कर दो। |
माना कि किस्मत पे मेरा कोई ज़ोर नही; पर ये सच है कि मोहब्बत मेरी कमज़ोर नही; उसके दिल में, उसकी यादो में कोई और है लेकिन; मेरी हर साँस में उसके सिवा कोई और नही। |
ऐसा जगाया आपने कि अब तक ना सो सके; यूँ रुलाया आपने कि महफ़िल में हम ना रो सके; ना जाने क्या बात है आप में सनम; माना है जबसे तुम्हें अपना किसी के ना हम हो सके। |
लाख बंदिशें लगा दे यह दुनिया हम पर; मगर दिल पर काबू हम कर नहीं पायेंगे; वो लम्हा आखिरी होगा हमारी ज़िन्दगी का; जिस पल हम तुझे इस दिल से भूल जायेंगे। |