आँखें मुझे तलवे से मलने नहीं देते; अरमान मेरे दिल के निकलने नहीं देते; खातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते; सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं दते; किसी नाज़ से कहते हैं झुंझला के शब-ए-वस्ल; तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते। |
वो लाख तुझे पूजती होगी मगर तू खुश न हो ऐ खुदा; वो मंदिर भी जाती है तो मेरी गली से गुजरने के लिए! |
मैंने अपनी हर एक सांस तुम्हारी गुलाम कर रखी है; लोगो में ये ज़िन्दगी बदनाम कर रखी है; अब ये आइना भी किस काम का मेरे; मैंने तो अपनी परछाई भी तुम्हारे नाम कर रखी है। |
सपनों की दुनिया में हम खोते चले गए; मदहोश न थे पर मदहोश होते चले गए; ना जाने क्या बात थी उस चेहरे में; ना चाहते हुए भी उसके होते चले गए। |
आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या; क्या बताऊँ कि मिरे दिल में हैं अरमाँ क्या क्या; ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी; देखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या। |
जब कभी टूट कर बिखरो तो बताना हमको; हम तुम्हें रेत के जर्रों से भी चुन सकते हैं। |
क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआर का; क्या इश्क़ पाएदार से ना-पाएदार का; वो इश्क़ जिस की शमा बुझा दे अजल की फूँक; उस में मज़ा नहीं तपिश-ओ-इंतिज़ार का। |
अजब अपना हाल होता जो वस्ल-ए-यार होता; कभी जान सदके होती कभी दिल निसार होता; कोई फ़ित्ना या क़यामत न फिर अश्कार होता; तेरे दिल पे ज़ालिम काश मुझे इख़्तियार होता। |
ऊपर से गुस्सा दिल से प्यार करते हो; नज़रें चुराते हो दिल बेक़रार करते हो; लाख़ छुपाओ दुनिया से मुझे ख़बर है; तुम मुझे ख़ुद से भी ज्यादा प्यार करते हो। |
आप पहलू में जो बैठें तो संभल कर बैठें; दिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की। |