ख़ुदा उसे भी किसी दिन ज़वाल देता है; ज़माना जिस के हुनर की मिसाल देता है! * ज़वाल - पतन |
दौर काग़जी था पर देर तक ख़तों में जज़्बात महफ़ूज़ रहते थे; अब मशीनी दौर है उम्र भर की यादें ऊँगली से ही डिलीट हो जाती हैं। |
देखूँ तो जुर्म और न देखूँ तो कुफ़्र है; अब क्या कहूँ जमाल-ए-रुख़-ए-फ़ित्नागर को मैं! |
ये ज़मीं आसमान रहने दे; कोई तो साएबान रहने दे! * साएबान - शामियाना |
फूल हँसे और शबनम रोई आई सबा मुस्काई धूप; याद का सूरज ज़ेहन में चमका पलकों पर लहराई धूप! |
कब खुलेगा कि फलक पार से आगे क्या है; किस को मालूम कि दीवार से आगे क्या है! |
मेरी हवस के अंदरूँ महरूमियाँ हैं दोस्त; वामाँदा-ए-बहार हूँ घटिया कहे सो हूँ! *महरूमियाँ - deprivation *वामाँदा-ए-बहार - fatigued of spring |
माना कि ज़लज़ला था यहाँ कम बहुत ही कम; बस्ती में बच गए थे मकाँ कम बहुत ही कम! |
अब चल पड़ा हूँ आखिरी अपने सफ़र को मैं; अच्छा है सीधा कर लूँ जो अपनी कमर को मैं! |
अगर मैं सच कहूँ तो सब्र ही की आज़माइश है; ये मिट्टी इम्तिहाँ प्यारे ये पानी आज़माइश है! |