किसी पत्थर में मूर्त है, कोई पत्थर की मूर्त है; लो हम ने देख ली दुनिया, जो इतनी खूबसूरत है; ज़माना अपनी न समझे कभी पर मुझे खबर है; कि तुझे मेरी ज़रूरत है और मुझे तेरी ज़रूरत है। |
तेरा एहसान हम कभी चुका नहीं सकते; तू अगर माँगे जान तो इंकार कर नहीं सकते; माना कि ज़िंदगी लेती है इम्तिहान बहुत; तू अगर हो हमारे साथ तो हम कभी हार नहीं सकते। |
ये इश्क भी नशा-ए-शराब जैसा है, यारो; करें तो मर जाएँ और छोड़े तो किधर जाएँ। |
इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है; सब्र रुख़्सत हो रहा है इज़्तिराब आने को है। अनुवाद: इब्तिदा-ए-इश्क़ = इश्क़ की शुरुआत लुत्फ़-ए-शबाब = जवानी का मज़ा इज़्तिराब = बेचैनी |
आँखों में चाहत दिल में कशिश है; फिर क्यों ना जाने मुलाकात में बंदिश है; मोहब्बत है हम दोनों को एक-दूसरे से; फिर भी दिलों में ना जाने यह रंजिश क्यों है। |
कुछ उलझे हुए सवालों से डरता है दिल; ना जाने क्यों तन्हाई में बिखरता है दिल; किसी को पा लेना कोई बड़ी बात तो नहीं; पर उनको खोने से डरता है यह दिल। |
क्या मांगू खुदा से तुम्हें पाने के बाद; किसका करूँ इंतज़ार तेरे आने के बाद; क्यों इश्क़ में जान लुटा देते हैं लोग; मैंने भी यह जाना तुमसे इश्क़ करने के बाद। |
दुःख में ख़ुशी की वजह बनी है मोहब्बत; दर्द में यादों की वजह बनी है मोहब्बत; जब कुछ भी ना रहा था अच्छा इस दुनिया में; तब हमारे जीने की वजह बनी है यह मोहब्बत। |
मेरी साँसों में बिखर जाओ तो अच्छा होगा; बन के रूह मेरे जिस्म में उतर जाओ तो अच्छा होगा; किसी रात तेरी गोद में सिर रख के सो जाऊं; फिर उस रात की कभी सुबह ना हो तो अच्छा होगा। |
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है; दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है; कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है; कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है। |