हयात ले के चलो क़ायनात ले के चलो; चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो! |
कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद; याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद! |
तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूंढो; चाहा था तुम्हें एक यही इल्ज़ाम बहुत है! |
नयी सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है; ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे! |
कब वो सुनता है कहानी मेरी; और फिर वो भी ज़बानी मेरी! |
और कुछ तोहफ़ा न था जो लाते हम तेरे नियाज़; एक दो आँसू थे आँखों में सो भर लाएँ हैं हम! *नियाज़ : इच्छा, दर्शन |
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से; सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी! *तस्दीक़: सच्चे होने की ताईद करना, सच्चा बताना |
वो क्या मंज़िल जहाँ से रास्ते आगे निकल जाएँ; सो अब फिर एक सफ़र का सिलसिला करना पड़ेगा! |
दर्द का ज़ायका बताऊँ क्या; ये इलाक़ा ज़ुबाँ से बाहर है! |
उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ; कश्ती मेरी डुबोई है साहिल के आस-पास! *साहिल: किनारा |