वक़्त-ए-रुखसत पोंछ रहा था मेरे आँसू अपने आँचल से; उसको ग़म था इतना कि वो खुद रोना भूल गया। |
हमें गम रहा जब तक, दम में दम रहा; दिल के जाने और टूट जाने का गम रहा; लिखी थी जिस कागज पर हक़ीक़त हमारी; एक मुद्दत तक वो कागज़ भी नम रहा। |
एहसास बहुत होगा जब छोड़ के जाएंगे; रोयेंगे बहुत मगर आँसू नहीं आएँगे; जब साथ कोई ना दे तो आवाज़ हमें देना; आसमान पर होंगे तो भी लौट के आएंगे। |
समुंदर बहा देने का जिगर तो रखते हैं लेकिन; हमें आशिकी की नुमाइश की आदत नहीं है दोस्त। |
तेरी याद में ज़रा आँखें भिगो लूं; उदास रात की तन्हाई में सो लूं; अकेले गम का बोझ अब सम्भलता नहीं; अगर तु मिल जाए तो तुझसे लिपट कर रो लूं। |
आगोश-ए-सितम में छुपाले कोई; तन्हा हूँ तड़पने से बचा ले कोई; सूखी है बड़ी देर से पलकों की जुबां; बस आज तो जी भर के रुला दे कोई। |
दर्द जब हद से गुजर जाता हूँ तो रो लेता हूँ; जब किसी से कुछ कह नहीं पता तो रो लेता हूँ; यूँ तो मेला हैं चारों तरफ हमारे, लोगों का मगर; जब कोई अपना नजर नहीं आता तो रो लेता हूँ। |
आंसू ना होते तो आँखे इतनी हसीन ना होती; दर्द ना होता तो खुशियां क्या होती; पूरी करते खुदा यूँ ही सब मुरादे तो; इबादत की कभी जरुरत ही ना होती। |
दिल के ज़ख्मो पर मत रो मेरे यार; वक़्त हर ज़ख्म का मरहम होता है; दिल से जो सच्चा प्यार करे; उनका तो खुदा भी दीवाना होता है| |
मेरे गम ने होश उनके भी खो दिए; मुझे समझाते-समझाते वो खुद ही रो दिए। |