कभी-कभी यूँ ही चले आया करो दिल की दहलीज पर; अच्छा लगता है, यूँ तन्हाइयों में तुम्हारा दस्तक देना। |
अगर नए रिश्ते न बनें तो, मलाल मत करना; पुराने टूट ना जायें बस, इतना ख्याल रखना। |
अब उतर आये हैं वह तारीफ पर, हम जो आदी हो गये दुश्नाम के। |
ठिकाना कब्र है तेरा, इबादत कुछ तो कर ग़ाफिल; कहावत है कि खाली हाथ किसी के घर जाया नहीं करते। |
कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर; अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा। |
मुझे कुछ अफ़सोस नहीं कि मेरे पास सब कुछ होना चाहिए था; मैं उस वक़्त भी मुस्कुराता था जब मुझे रोना चाहिए था। |
उलझी शाम को पाने की ज़िद न करो; जो ना हो अपना उसे अपनाने की ज़िद न करो; इस समंदर में तूफ़ान बहुत आते हैं; इसके साहिल पर घर बनाने की ज़िद न करो। |
होंठो ने तेरा ज़िक्र न किया पर मेरी आँखें तुम्हें पैग़ाम देती हैं; हम दुनियाँ से तुम्हें छुपाएँ कैसे, मेरी हर शायरी तेरा ही नाम लेती है। |
नाम उसका मेरी जुबान पर आते-आते रुक जाता है; जब कोई मुझसे मेरी आखिरी ख्वाहिश पूछता है! |
जिंदा-दिल रहिए जनाब, ये चेहरे पे उदासी कैसी; वक्त तो बीत ही रहा है, उम्र की एेसी की तैसी! |