दयार-ए-शौक में आए थे एक ख़्वाब के साथ; गुजर रही है मुसलसल किसी अजाब के साथ! |
क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं; वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं! |
किसे बताएँ कि ज़ाद-ए-सफ़र गया कब का; रहा ही क्या है ग़म-ए-मो'तबर गया कब का! |
जाने फिर तुम से मुलाक़ात कभी हो कि न हो; खुल के दुख-दर्द की कुछ बात कभी हो कि न हो! |
मेरी उदासी मुझसे रोज़ मिलने आती हैं; मुस्कुराकर हर बार उसे रूखसत कर देता हूँ! |
तेरे बाद कुछ यूं मोहब्बत निभाई है मैंने; तुम नहीं कोई नहीं कसम खाई है मैंने! |
जिंदगी में क्यों भरोसा करते हो गैरों पर; जब चलना है अपने ही पैरों पर! |
अपनों से कभी दिल का रिश्ता नहीं तोड़ा करते; मुश्किलों के वक़्त कभी साथ नहीं छोड़ा करते! |
न तू अपना था, न तेरा प्यार अपना था; बस काश ये दिल मान ले की तू एक सपना था! |
दूरियों का ग़म नहीं अगर फ़ासले दिल में ना हों, नज़दीकियां बेकार हैं अगर जगह दिल में ना हो! |