खुशबु ने फूलों को ख़ास बनाया; फूलों ने माली को ख़ास बनाया; और कमबख्त मोहब्बत ने; कितनो को देवदास बनाया! |
जब कोई इतना ख़ास बन जाये; उसके बारे में सोचना एहसास बन जाये; तो मांग लेना खुदा से उसे जिंदगी भर के लिए; इससे पहले कि उसकी माँ किसी और की सास बन जाये। |
वाह गालिब तूने क्या शेर मारा है; वाह गालिब तूने क्या शेर मारा है; अरे यार! देख जरा शेरनी कितना रो रही है। |
काला न कहो मेरे महबूब को; काला न कहो मेरे महबूब को; खुदा तो तिल ही बना रहा था; पर प्याला ही लुढ़क गया। |
गिले शिकवे दिल से न लगा लेना; कभी रूठ जाऊं तो मना लेना; कल का क्या पता हम हो न हो; इसलिए जब भी मिलूं; कभी समोसा और कभी पानी पूरी खिला देना। |
अय दोस्त मत कर इन हसीनाओं से मोहब्बत; वह आँखों और बातों से वार करती हैं; मैंने तेरी वाली की आँखों में देखा है; वो मुझसे भी प्यार करती है। |
दिल की धड़कन रुक सी गई; सांसें मेरी थम सी गई; पूछा हमने दिल के डॉक्टर से तो पता चला; कि सर्दी के कारण आपकी यादें दिल में जम सी गई। |
हक़ीकत थी पर ख़्वाब निकला; दूर था पर पास निकला; मैं इस बात को क्या कहूं; ये ज़रदारी तो मुसर्रफ़ का भी बाप निकला। |
आंसू टपक पड़े बेरोजगार के उस एहसास पर ग़ालिब; कि आंसू टपक पड़े बेरोजगार के उस एहसास पर ग़ालिब; जब माँ ने कहा; "बेटा खाली बैठा है, जा मटर ही छील ले।" |
कैसे मुमकिन था किसी और दवा से इलाज़? अय ग़ालिब। इश्क का रोग था; . . . "माँ की चप्पल से ही आराम आया।" |