डायरेक्टर: अजय बहल
रेटिंग: ***1/2
अंजलि (मीरा चोपडा) जो की एक कॉस्टयूम डिज़ाइनर है, अपने बॉस और फिल्म डायरेक्टर रोहन खुर्राना (राहुल भाट) पर यह इलज़ाम लगाती है की जब वह उसे कुछ कॉस्टयूम सैंपल दिखाने के लिए उसके फ्लैट पर गयी तो रोहन ने मौका पा कर अंजलि का रेप किया.
रोहन को गिरफ्तार कर लिया जाता है और केस अदालत पहुँचता है जहाँ रोहन को दोषी करार देते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाइ जाती है. रोहन इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करता है जिसके बाद जन विरोध के बावजूद उसके बचाव में आता है एक मशहूर और जाना माना वकील तरुण सलूजा (अक्षय खन्ना) और अंजलि का पक्ष रखती हैं तरुण की पूर्व एसोसिएट रह चुकी वकील हिराल मेहता (ऋचा चड्ढा). दोनों वकील अपने - अपने क्लाइंट के मुताबिक उस दिन फ्लैट में जो हुआ था उस कहानी को सही साबित करने की कोशिश करते हैं और शुरू होता है एक रोमांचक कोर्टरूम ड्रामा.
सेक्शन 375 की कहानी दिलचस्प है और आपकी आँखों को स्क्रीन पर टिका कर रखती है की कहीं आपसे कुछ छूट न जाए. अजय बहल का निर्देशन कमाल का है जो आपको फिल्म के साथ बाँध कर रखने में कामयाब रहता है.
अजय, सेक्शन 375 के ज़रिये औरत और मर्द दोनों का पक्ष सही तरीके से दिखाने के साथ - साथ परदे पर एक इंटरेस्टिंग कोर्टरूम ड्रामा दिखाने में सफल रहते हैं.
रेप जैसे सेंसिटिव इशू और इंडियन पीनल कोड का सेक्शन 375 जो रेप की परिभाषा और सजा निर्धारित करता है इसके दुरूपयोग पर अजय ने अपनी राय इस फिल्म में बहुत ध्यान से पेश की है जो की फिल्म का आधार है.
सेक्शन 375 के दुरूपयोग के साथ ही फिल्म यह भी दर्शाती की कैसे हमारे देश में एक व्यक्ति जिस पर रेप का इलज़ाम लगा हो उसे अदालत में दोषी ठहराए जाने से पहले ही मीडिया दोषी ठहरा देता है और किस तरह मीडिया द्वारा एक रेप केस की खबर में मर्द को दोषी बना कर एक मसालेदार डिश की तरह दर्शकों को टीवी पर परोसा जाता है.
तरुण सलूजा के किरदार में अक्षय खन्ना की परफॉरमेंस प्रशंसनीय है, उन्हें देख कर मालूम पड़ता है की उन्होंने इस किरदार को निभाया नहीं बल्कि जिया है और अच्छे से जिया है. उनकी स्क्रीन प्रेजेंस और एनर्जी की जितनी तारीफ की जाए कम है.
ऋचा चड्ढा भी हिरल मेहता के किरदार ठीक लगी हैं हालांकि अक्षय खन्ना के किरदार के सामने उनका किरदार कमज़ोर नज़र आता है और ऋचा इस किरदार में अक्षय की तरह जान डालने में ख़ास कामयाब नहीं हो पायी हैं.
राहुल भाट ने, एक अकडू डायरेक्टर रोहन खुर्राना के किरदार में बढ़िया कम किया है, मीरा चोपडा का किरदार जिस तरह लिखा गया है उनके पास फिल्म कुछ ख़ास करने के लिए है नहीं और उस हिसाब से उनका काम ठीक है. बाकी सभी किरदार अपनी - अपनी जगह ठीक लगे हैं. अजय बहल की सेक्शन 375 आपको अंत तक उलझन में डाल कर रखती है की आखिर कौन सही है और कौन गलत और देश में रेप की परिभाषा और उसकी सजा निर्धारित करने वाले 'सेक्शन 375' के बारे में सोचने पर मजबूर करती है, की क्या ये कानून पक्षपाती है? या फिर नहीं.
फिल्म आपको अच्छी लगेगी या नहीं, ये इसे देखते वक़्त आप किस पक्ष की तरफ से इसे देख रहे हैं उस पर निर्भर करता है.