निर्देशक: नवजोत गुलाटी
रेटिंग: **
नवजोत गुलाटी की रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म 'जय मम्मी दी' कहानी है दिल्ली के पुनीत खन्ना (सनी सिंह) और सांझ भल्ला (सोनाली सियागल) की. इन दोनों की मम्मियां पिंकी (पूनम ढिल्लों) और लाली (सुप्रिया पाठक) हैं एक समय कॉलेज के दिनों में गहरे दोस्त हुआ करते थे, लेकिन अब एक दुसरे की कट्टर दुश्मन हैं और इसी वजह से, पुन्नू (पुनीत) और सांझ भी एक दूसरे से बदला लेने की ठान लेते हैं मगर बदले की जगह एक दूसरे से प्यार कर बैठते हैं.
लेकिन, दोनों की मम्मियों के बीच कड़वाहट और दुश्मनी के कारण इनके प्यार के रास्ते में कई रोड़े आते हैं. पुनीत और सांझ दोनों साथ मिलकर अपनी माताओं को उनकी शादी के लिए मनाने की पूरी कोशिश में जुट जाते हैं जिसके बाद इन लव बर्ड्स की रोमांटिक लाइफ क्या नया मोड़ लेती है और दोनों एक हो पाते हैं या नहीं ये इस फिल्म की कहानी है.
जय मम्मी दी, दिल्ली और दिल्लीवालों को ज़्यादातर बॉलीवुड फिल्मों की तरह रूढ़िवादी तरीके से पेश करती है जो की बिलकुल असली नहीं लगता. फिल्म में दिल्ली के पंजाबियों को चमकदार रंगों में दिखाने का बॉलीवुड का सिलसिला इस फिल्म ने जारी रखा है और उनके नाम भी वही पुराने हैं मिस्टर 'भल्ला' और 'खन्ना'.
फिल्म की कहानी फर्स्ट हाफ में ही बैकसीट पर चली जाती है और स्क्रीनप्ले फीके और घिसे - पिटे जोक्स से भरा हुआ है जिन पर हंसी छोड़ कर बाकी सब कुछ आता है. लेकिन, कुछ बढ़िया वन लाइनर्स ऐसे भी हैं जो आपको हंसाने में कामयाब रहते हैं और इंटरवल मिला कर लगभग 2 घंटे तक की इस फिल्म को सहन करने में आपकी सहायता करते हैं.
परफॉरमेंस की बात करें तो एक हॉट और बोल्ड दिल्ली की लड़की सांझ के रूप में सोनाली सेगल खूबसूरत तो लगती हैं लेकिन अपने किरदार के साथ इन्साफ करने में नाकामयाब रहती हैं. उनके किरदार का लुक उनके लफ़्ज़ों से बिलकुल नहीं मिलता और ऐसा लगता है जैसे सांझ के शरीर में आत्मा किसी और की है.
सनी सिंह यहाँ पुनीत के रूप में अच्छे लगे हैं और अपने किरदार में जान डालने की उन्होंने पूरी कोशिश की है मगर लेकिन फिल्म की कमज़ोर राइटिंग उनकी सारी कोशिश पर पानी फेर देती है और जल्द ही वे जय मम्मी दी नाम के इस जहाज़ को खींच के आगे ले जाने की कोशिश करते हुए नज़र आते हैं जिसका डूबना तय है.
सुप्रिया पाठक और पूनम ढिल्लों की क्षमताओं का फिल्म की 'मम्मियों' के रूप में निर्देशक नवजोत गुलाटी ने पूरा इस्तेमाल नहीं किया है. लेकिन, बात हम सुप्रिया पाठक की कर रहे हैं, जो की बॉलीवुड की सबसे बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक हैं और वह 'लाली' को परदे पर पूरे जोर के साथ निभाती हुई दिखती हैं, हालाँकि पूनम ढिल्लन का काम यहाँ औसत ही लगा है.
फिल्म का संगीत बढ़िया और एनर्जी से भरपूर है लेकिन जहाँ गाना नहीं भी होना चाहिए वहां भी आ जाता है जो की फिल्म की लय को बिगाड़ने का काम करता है. स्टार कास्ट के अलावा जय मम्मी दी की सबसे बढ़िया चीज़ है इसका इसका 1 घंटे 40 मिनट का रनटाइम जो की उतना थकाऊ नहीं है.
कुल मिलाकर, जय मम्मी दी एक एवरेज बॉलीवुड रोमांटिक - कॉमेडी हैं, जो की एक एंटरटेनर की आड़ में छुपी सुस्त फिल्म है और एक अच्छी शुरुआत के बाद औंधे मुह गिर पड़ती है जिसके बाद फिर कभी नहीं उठती.