निर्देशक: अश्विनी अईयर तिवारी
रेटिंग: ****
भारत एक ऐसा देश है जहाँ एक औरत या तो मां होती है, या बेटी या पत्नी या फिर कुछ और, यही उसकी पहचान भी बन कर रह जाती है. औरतों को मां, बहन, बेटी या पत्नी के अलावा अपनी एक पहचान बनाने के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ता है.
अश्विनी अईयर तिवारी की स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म पंगा ऐसी ही एक औरत की कहानी है जो अपनी पहचान वापस पाने और अपने सपने पूरे करने के सफ़र पर निकलती है. जया निगम (कंगना रनौत) एक समय पर भारतीय राष्ट्रीय कबड्डी टीम की कप्तान और राष्ट्रीय चैंपियन थी. मगर शादी के बाद अब उसका जीवन, उसके 7 साल के बेटे आदि (याग्य भसीन), घर के काम - काज, एक बेहद प्यार करने वाले पति प्रशांत (जस्सी गिल) और उसकी 9-5 की रेलवे की नौकरी के बीच ही घूमती है.
जया अपनी ज़िन्दगी से खुश है, वह एक अच्छी पत्नी है, अच्छी मां है और उसके पास सब कुछ है जिसकी एक औरत अपनी शादी में चाह रखती है. मगर फिर एक दिन जब उसके बेटे आदि को उसके कबड्डी चैंपियन होने का पता चलता है तो वह उत्सुकता के कारण जाया को फिर से खेलते हुए देखना चाहता है और जया भी उसका मन रखने के लिए हाँ कर देती है.
मगर जब वह कबड्डी खेलना वापस शुरु करती है तो अचानक उसे इस बात का एहसास होता है की कबड्डी ही उसका जूनून है और ये एहसास उसे अपने अधूरे सपने के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है की वह क्या हो सकती थी और क्या है. जिसके बाद 32 साल की उम्र में जया अपने खोयी हुई पहचान वापस पाने और भारतीय राष्ट्रीय कबड्डी टीम में अपनी जगह वापस पाने के लिए निकलती है और वह कामयाब होती है या नहीं यह कहानी है कंगना रनौत की इस दमदार फिल्म की.
अश्विनी अईयर तिवारी जो की इससे पहले भी 'निल बट्टे सन्नाटा' और 'बरेली की बर्फी' जैसी फ़िल्में बना चुकी हैं पंगा में फिर एक बार छोटे शहर के लोगों और उनके रहन - सहन को परदे पर सुन्दरता से उकेरने में कामयाब रहती है. उनकी फिल्म की कहानी और इसके किरदार इतने असली लगते है की ऐसा लगता ही नहीं की आप फिल्म देख रहे हैं, लगता है जैसे फिल्म की घटनाएं आपकी आँखों के सामने ही घट रही हैं.
पंगा का स्क्रीनप्ले आपको शुरु से बाँध कर रखता है और पलकें झपकाने का न के बराबर मौका देता है. एक भारतीय महिला जब अपने सपने पूरे करने की राह पर निकल पड़ती है तो उसे उसके सपनों और घर की जिम्मेदारियों के बीच किस तरह तालमेल बनाना पड़ता है यह फिल्म में बखूबी देखने को मिलता हैं. हर सीन बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है और पंगा के किरदार इतने साधारण है की आप उनकी ज़िन्दगी से खुद को आसानी से जोड़ कर देख पाते हैं जो की फिल्म को और भी मनोरंजक बना देता है.
इन सब का श्रेय जाता है निर्देशक अश्विनी अईयर तिवारी और निखिल मेहरोत्रा की मज़बूत राइटिंग और कसी हुई स्क्रिप्ट को जिसकी प्रशंसा करना बनता है और साथ ही नितेश तिवारी के डायलॉग्स भी मज़ेदार हैं जो की आपको हंसाने के साथ - साथ आपका मनरंजन करते हैं.
प्रदर्शन की बात जाए तो पंगा पूरी तरह से कंगना रनौत की फिल्म है जिन्होंने जया के किरदार में एक ज़बरदस्त परफॉरमेंस दी है और इस किरदार को परदे जीवंत कर दिया है. कंगना ने इस फिल्म से एक बार फिर साबित कर दिया है की वे बॉलीवुड में एक्टिंग की असली 'क्वीन' क्यूँ हैं और किसी भी किरदार में ढलने की उनकी प्रतिभा कमाल की है. जया के किरदार में कंगना इस फिल्म की जान हैं और जितनी प्रशंसा की जाए कम है.
जया की दोस्त 'मीनू' के रूप में ऋचा चड्ढा भी हमेशा की तरह एक मज़बूत प्रदर्शन करती दिखी हैं और अपना प्रभाव छोडती हैं. जया की सास के रूप में नीना गुप्ता ख़ूब जची हैं और उनकी और कंगना की सास - बहु केमिस्ट्री भी काफी दिलचस्प है और देखने में मज़ेदार.
जस्सी गिल जया को हरसंभव सहयोग देने और प्यार करने वाले पति 'प्रशांत' के रूप में सहज लगे हैं और उके चेहरे पर हर पल रहने वाली मुस्कान जया का हौसला हर समय बनाए रखती है. याग्य भसीन जया के बेटे 'आदि' के रूप में मनमोहक हैं और उनकी कॉमिक टाइमिंग भी बढ़िया है.
म्यूजिक डिपार्टमेंट में शंकर - एहसान - लॉय ने अच्छा काम किया है और जावेद अख्तर के लिरिक्स के साथ उनका म्यूजिक फिल्म की कहानी को और भी आकर्षक बनाता है.
कुल मिलाकार, कंगना रनौत की पंगा एक साधारण परिवार की साधारण कहानी है. यह फिल्म शादी के बाद हमारे देश में महिलाओं को क्या - क्या बलिदान देने पड़ते हैं उन्हें गर्व से पेश करती है मगर साथ ही कहती है की अपने सपनों को अधूरा मत छोड़िये. ये एक महिला का मनोरंजक और प्रेरणादायक सफ़र है जो 32 साल की उम्र में अपने सपने पूरे करने निकल पड़ती है और ये साबित करती है की 'हो सकता था' को 'हैं' में जब चाहें तब बदल सकते हैं क्यूंकि सपने पूरे करने की कोई उम्र नहीं होती.