निर्देशक: हितेश केवल्य
रेटिंग: ****
हितेश केवल्य की डेब्यू डायरेक्टोरियल फिल्म भारत में समलैंगिकता और उससे जुड़े अंधविश्वास के आस - पास घूमती है. तो आइये देखते हैं अपनी पहली फिल्म में आखिर हितेश दर्शकों के लिए क्या लेकर आये हैं.
शुभ मंगल ज्यादा सावधान है तो एक प्रेम कहानी लेकिन वो नहीं जो आप अक्सर बॉलीवुड फिल्मों में देखा करते हैं. फिल्म की शुरुआत होती है दिल्ली में जहाँ कार्तिक सिंह (आयुष्मान खुर्राना) और अमन त्रिपाठी (जीतेन्द्र कुमार) भागते - भागते डीडीएलजे स्टाइल में एक ट्रेन पकड़ते हैं. लेकिन वे शादी करने के लिए नहीं भाग रहे हैं बल्कि काम पर जाने के लिए ट्रेन पकड़ रहे हैं. दोनों सेल्समैन हैं और टूथपेस्ट बेचते हैं जिसकी टैगलाइन है 'क्या आपके टूथपेस्ट में प्यार है'.
इलाहाबाद में अमन के घर पर उसकी चचेरी बहन रजनी उर्फ़ गॉगल्स (मानवी गग्रू) की शादी की तयारी चल रही है. स्क्रीन पर एंट्री होती है कुसुम (पंखुड़ी अवस्थी) की. कुसुम वह लड़की है जिसे अमन के माता पिता ने उसकी शादी के लिए चुना है और तभी अमन की मां सुनैना त्रिपाठी (नीना गुप्ता) अमन को फ़ोन करके पूछती हैं की वह कब तक पहुँच रहा है लेकिन अमन आने से मना कर देता है क्यूंकि दिल्ली में उसकी लव स्टोरी पहले से ही जारी है जिससे उसके घरवाले अनजान हैं.
जब अपने प्यार और लैंगिकता को सबके सामने लाने की बात आती है तो कार्तिक खुले विचारों वाला इन्सान है लेकिन अमन समाज और घरवालों से डरता है. फिर भी कार्तिक के मनाने पर अमन इलाहाबाद जाने के लिए तैयार हो जाता है और दोनों परिवार के साथ शामिल होने के लिए ट्रेन पकड़ लेते हैं. लेकिन मामला तब गड़बड़ हो जाता है जब अमन के पिता शंकर त्रिपाठी (गजराज राव) अमन और कार्तिक को किस करते हुए देख लेते हैं जिसके बाद शुरू होता है कॉमेडी और ड्रामे का ज़बरदस्त सिलसिला जो अंत तक जारी रहता है.
यह हितेश केवल्य की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है और उनका निर्देशन बेहद उम्दा है जिसे देख कर आपके मुह से उनके लिए सिर्फ तारीफ निकलती है. उन्होंने फिल्म के किरदारों को इतनी परिपक्वता से पिरोया है की ये फिल्म किसी एक कलाकार की नहीं बल्कि सबकी लगती है. हितेश की राइटिंग भी मज़बूत है और उनके निर्देशन के साथ मिलकर ये फिल्म की कहानी और इसके किरदारों में जीवंत कर देती है. दमदार जॉइंट फॅमिली सेटअप के साथ मज़ेदार वन लाइनर्स आपको खूब हंसाते हैं और फिल्म को कहीं लुढ़कने नहीं देते. फिल्म का स्क्रीनप्ले कॉमेडी से भरपूर है और निर्देशक की पकड़ फिल्म पर कहीं भी ढीली नहीं पड़ती है.
हितेश केवल्य ने अपनी पहली ही फिल्म में समलैंगिकता जैसा एक नाज़ुक विषय और हमारे समाज में उससे जुड़े अंधविश्वास को लेकर एक पारिवारिक एंटरटेनर के रूप में बड़ी खूबसूरती से पेश किया है. फिल्म अपना सन्देश दर्शक तक पंहुचाने में कामयाब रहती है वो भी बिना उमाऊ लगे. फिल्म में ड्रामा और इमोशनल फैक्टर दोनों पर्याप्त मात्र में हैं जिनसे आप कहीं ना कहीं खुद को जोड़ कर भी देख पाएँगे और एलजीबीटी समुदाय का दर्द भी समझ पाएंगे.
कार्तिक के रूप में आयुष्मान खुर्राना ने अपनी बहुप्रतिभा का बखूबी प्रदर्शन किया है. एक बार फिर वे दिखाते हैं की किसी भी तरह के किरदार में ढल सकते हैं और वो भी शानदार तरीके से. नथुनी पहने हुए उनका बॉलीवुड स्टाइल फिल्मी कार्तिक सिंह फिल्म के हर सीन में सबसे अलग नज़र आता है और उनकी कॉमिक और इमोशनल टाइमिंग भी प्रशंसनीय है. जीतेंद्र कुमार ने अमन त्रिपाठी के रूप में एक सहज प्रदर्शन किया है. उनका किरदार परिपक्व है और आयुष्मान जैसे अभिनेता के सामने भी वे अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.
नीना गुप्ता और गजराज राव रूढ़िवादी भारतीय माता - पिता के रूप में परफेक्ट लगे हैं. दोनों की ही कॉमिक टाइमिंग ज़बरदस्त है और मात्र स्क्रीन पर इनकी मौजूदगी ही फिल्म में जान दाल देती है. बधाई हो के बाद दोनों की जोड़ी को फिर एक साथ देखना काफी अच्छा लगा है.
मानवी गग्रू अमन की बहन रजनी/गॉगल्स के किरदार में एक दम हटके लगी हैं और उनका किरदार भी काफी दिलचस्प है और अमन के चाचा - चाची के रूप में सुनीता राजवर और मनुऋषि चड्ढा भी बेहद बढ़िया है. कुसुम के किरदार में पंखुड़ी अवस्थी मनोरंजक हैं और भूमि पेड्नेकर का केमियो भी आपको ज़रूर पसंद आएगा. फिल्म का संगीत भी कहानी के अनुकूल है और इसकी लय के साथ चलता है.
कुल मिलाकर शुभ मंगल ज़्यादा सावधान एक एंटरटेनमेंट से भरपूर लव स्टोरी है जो आपको खूब हंसाती है. फिल्म आपके मन पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहती है और प्यार की सामाजिक परिभाषा पर जो लोग खरे नहीं उतारते उन्हें देखना का आपका नजरिया भी बदलती है. फिल्म का क्लाइमेक्स खूबसूरत है जो आपके चेहरे पर मुस्कान ज़रूर लेकर आएगा. बिना सोचे देख सकते हैं.