कहानीकार सुधांशु राय की ‘भाई साहब चले बैंकॉक’ हास्‍य-विनोद रस से भरपूर है

Monday, April 27, 2020 09:41 IST
By Santa Banta News Network
यह आम धारणा है कि आप किसी बैचलर से पूछिए उसकी विदेश यात्रा की मनपसंद मंजिल का पता तो वह बेझिझक बैंकॉक का ही नाम लेगा। लेकिन सच्‍चाई तो यह है कि आज इंटरनेशनल ट्रिप के दौरान मौज-मस्‍ती की चाहत रखने वाले किसी भी ट्रैवलर की पसंदीदा मंजिल थाइलैंड की राजधानी और यह चाहत सिर्फ बैचलर्स तक सीमित नहीं है। यात्रा का मज़ा उस वक्‍़त दोगुना हो जाता है जब एक ऐसा मिडल क्‍लास भारतीय बैंकॉक के सफर पर निकलता है जिसकी यह पहली विदेश यात्रा होती है।

ऐसा ही कुछ हुआ 'भाई साहब' के साथ, जो कहानीकार सुधांशु राय की हिंदी में प्रस्‍तुत हास्‍य कथा - 'भाई साहब चले बैंकॉक' के प्रमुख किरदार हैं। उत्‍तर प्रदेश में लखनऊ शहर के एक साधारण टीचर के लिए यह एक अत्यधिक ख़ुशी का मंज़र था जब उनके एक छात्र के पिताजी ने उन्‍हें पटाया और बैंकॉक का रिटर्न टिकट गिफ्ट किया। गिफ्ट मिलने की देर थी और भाई साहब के आस-पड़ोस में थाइलैंड यात्रा की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। लेकिन अब भाई साहब के लिए हैरान होने की बारी थी, क्‍योंकि पड़ोसियों के बदले-बदले से भाव और उनकी प्रतिक्रियाएं कुछ और ही कहानी कह रही थीं। लेकिन भाई साहब ने इसे पड़ोसियों का ईर्ष्‍या भाव समझकर इस तरफ ध्‍यान न देने का फैसला कर लिया और सफर की तैयारी में लग गए।

असली मज़ा तब आता है जब कथावाचक डबलू की मुलाकात बैंकॉक एयरपोर्ट के बाहर भाई साहब से होती है जब वे पुलिस कर्मियों के साथ बहस में लगे थे। यहां से डबलू, मंटू, विक्‍की और चिंटू के साथ भाई साहब की दिलचस्‍प यात्रा शुरु होती है। यह सफर मौज-मस्‍ती से भरपूर था और हंसाते-हंसाते बीत रहा था, जिसमें कहानी के किरदार की मासूमियत का बड़ा हाथ था। पूरे सफर में भाई साहब की सबसे बड़ी चिंता ट्रिप के खर्च को लेकर थी। वह इतने बड़े कंजूस थे कि एक मंदिर में सिर्फ इस वजह से नहीं घुसे कि उसके लिए उन्‍हें एंट्री फीस देनी पड़ती। लेकिन कहानी अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती रही और अंत तक आते-आते यह कंजूस महाशय दिल के धनी और प्रेम भाव से पूर्ण इंसान बनकर उभरे।

आज जबकि हम अपने घरों की दहलीज़ से भी बाहर कदम नहीं रख पा रहे हैं, ऐसे में कहानीकार सुधांशु राय की यह कहानी न सिर्फ हमें गुदगुदाने के लिए काफी है बल्कि हमें बैंकॉक की गलियों की काल्‍पनिक तस्‍वीरें दिखाकर विदेशी सरज़मीं पर भी घुमाने ले जाती है। इस कहानी में आप अपनी मातृभूमि से दूर, पहली विदेश यात्रा पर निकले भाई साहब को एक कंजूस इंसान से एक भावुक अंतर्मन वाले इंसान में बदलते हुए देखेंगे। पूरी कहानी सुनने के लिए यहां क्लिक करें:

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