कहानी के मुख्य किरदार सिद्धार्थ मिश्र हैं जो एक जाने-माने फिल्म निर्माता हैं और अपने कॅरियर की सबसे बेहतरीन फिल्म का निर्माण करने की धुन उन्हें भानगढ़ के किले तक ले आयी है। सिद्धार्थ और उनकी टीम के सदस्यों ने पहले से ही इस किले से जुड़ी कितनी ही दंतकथाओं और भूतहा कहानियां सुन रखी हैं। अपनी कहानी के लिए एक असल अहसास जुटाने के लिए सिद्धार्थ अपने टीम के साथ पहुंच जाते हैं भानगढ़ के किले पर। उनके साथ हैं बॉलीवुड अभिनेता कबीर और फैसला होता है रात के अंधकार में शूटिंग करने का। फिल्म निर्माण टीम के वहां पहुंचने के बाद से ही कुछ न कुछ अनहोनी घटनाएं महसूस होने लगती हैं। टीम के बार-बार अनुरोध के बावजूद सिद्धार्थ इस बात पर अड़े रहते हैं कि एक दृश्य तो रात के वक़्त किले के अंदर ज़रूर शूट किया जाएगा।
लेकिन जब वे किले के अंदर जाते हैं, तो उन्हें नहीं मालूम होता कि उनके सामने क्या आने वाला है। सिद्धार्थ अपनी धुन में इतने रमे हैं कि वे किले के गार्ड की चेतावनी को भी अनदेखा करते हैं जिसने उन्हें प्रवेश बिंदु से 500 मीटर आगे जाने से रोकना चाहा था। क्या होता है जब फिल्म क्रू इस किले के काफी नज़दीक पहुंचकर शूटिंग शुरू करता है? क्या सचमुच कोई है जो उनके पीछे चुपचाप आकर खड़ा हो गया है और जिसकी गरम सांसे वे अपनी गर्दन पर महसूस भी कर रहे हैं? आखिर वे विकृत प्राणी कौन थें जो पेड़ों पर टंगे थें? क्या जासूस बूमराह इस रहस्य को सुलझा सकते हैं?
इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे यह कहानी सुनकर जो रौंगटे खड़ी कर देने वाली है। बेशक, पहले भी भानगढ़ की पृष्ठभूमि में कई कहानियां लिखी जा चुकी हैं और कई फिल्मों की शूटिंग यहां हो चुकी है, लेकिन शायद ही कोई इस किले की असली तस्वीर और सिहरन पैदा कर देने वाले माहौल को इतनी शिद्दत से दिखला पाया हो। लेकिन कहानीकार सुधांशु राय की भानगढ़ के किले पर लिखी कहानी की बात ही कुछ और है। इसे महसूस करने के लिए आपको खुद कहानी सुननी होगी!