जेएल 50 रिव्यु: उत्सुकता पैदा करते हैं अभय देओल और पंकज त्रिपाठी मगर कहानी कुछ कमज़ोर

Monday, September 07, 2020 17:46 IST
By Santa Banta News Network
कास्ट: अभय देओल, पंकज कपूर, राजेश शर्मा, रितिका आनंद, रोहित बस्फोरे, अमृता चटोपाध्याय

निर्देशक: शैलेन्द्र व्यास

रेटिंग: **1/2

प्लेटफार्म: सोनी लिव

कभी आपने उन फ्लाइट्स के बारे में सोचा है जिन्होंने उड़ान तो भरी मगर कभी अपनी मंजिल तक पहुंचे नहीं | अगर ऐसा ही कोई गायब हुआ प्लेन आपको उड़ान भरने के 35 साल बाद मिल जाए तो? ये सुनने में जितना रोमांचक लगता है उतना ही है भी और ऐसे ही एक कहानी है सोनी लिव की सीरीज जेएल 50 जो की टाइम ट्रेवल के इर्द-गिर्द घूमती है|

सीरीज लावा, पश्चिम बंगाल में स्थित है जिसकी शुरुआत होती है एक सीबीआई ऑफिसर शांतनु (अभय देओल) से जो की नार्थ-ईस्ट में एक गायब हुई फ्लाइट एओ26 की खोज में पहुँचता है जहाँ उसे एक प्लेन का मलबा मिलता है | मगर ये मलबा एओ26 का नहीं बल्कि 35 साल पहले गायब हुए एक प्लेन जेएल50 का है जो की ताज़ा क्रैश हुआ है | इस प्लेन में 40 पैसेंजर थे जिनमें से सिर्फ 2 लोग ही रहस्यम य तरीके से बच पाए हैं, एक है प्लेन की पायलट भिऊ (रितिका आनंद) और दूसरा है प्रोफेसर मित्र (पियूष मिश्र)|

अब एओ26 की खोज में निकले शांतनु को जब इस बात का पता चलता है उसके साथ - साथ दर्शक भी असमंजस में पड़ जाते की आखिर 35 साल पहले गायब हुआ प्लेन अचानक कैसे सामने आ कर क्रैश हो गया और बचे हुए दोनों लोगों की उम्र एक दिन भी नहीं बढ़ी है | वहीँ दूसरी तरह एओ26 को आतंकियों ने हाईजैक कर लिया है जो की यात्रियों के बदले जेल से अपने लीडर को रिहा करने की मांग कर रहे हैं | जांच शुरू होती है प्रोफेसर दास (पंकज कपूर) से जो की अकेले ऐसे पैसेंजर हैं जिन्होंने 35 साल पहले जेएल50 की फ्लाइट टिकेट बुक की थी मगर फ्लाइट पकड़ी नहीं | जांच में आगे जो सामने आता है वो है कहानी जेएल 50 की |

शैलेन्द्र व्यास द्वारा लिखित और निर्देशित सीरीज़ जेएल50 साइंस फिक्शन का भारतीय स्टाइल है जो अपने आप में भारतीय एंटरटेनमेंट जगत का पहला मिश्रण है | शैलेन्द्र का निर्देशन शुरुआत में मज़बूत है मगर आगे चल कर कई जगह ये कमज़ोर नज़र आता है | कहानी साल 1984 और आज के बीच शिफ्ट होती रहती है और निर्देशक यहाँ 35 साल पहले के 1984 और आज के बीच उलझे हुए नज़र आते हैं || चाहे बात उस समय के हालात की हो, भाषा की, या बोलने के लहज़े की, गलतियाँ कई दृश्यों में साफ़ देखी जा सकती हैं |

कहानी की बात की जाए तो कई ट्विस्ट ऐसे हैं जिनका अंदाज़ा पहले ही लगाया जा सकता है हालांकि शैलेन्द्र व्यास ने हर एक चीज़ को बखूबी समझाया है जो दर्शक को अपना सर खुजाने पर मजबूर नहीं करता | इस सीरीज़ में साइंस और फिक्शन दोनों का मिश्रण देखने को मिलता है वो भी इंडियन स्टाइल में जो की रोमांचक है मगर कहानी की रफ़्तार धीमी होने के कारण ये रोमांच लगातार ज़्यादा देर तक बना नहीं रह पाता | कहानी में कुछ ऐसे चीज़ें भी हैं जीकी बिलकुल भी ज़रूरत नहीं थी और वे दर्शक का ध्यान भटकाने के अलावा और कुछ नहीं करती |

परफॉरमेंस कपर नज़र डालें हर कलाकार ने बेहतरीन एक्टिंग की है | अभय देओल 'शांतनु' के रूप में दिलचस्प लगे हैं और सच सामने लाने की उनकी ललक और हाव-भाव दोनों कमाल के हैं | पंकज कपूर भारतीय सिने जगत के सबसे मंझे हुए कलाकारों में से एक हैं जिसका परिचय उन्होंने फिर एक बार दिया है और वो खूबसूरती से | पियूष मिश्रा भी प्रोफेसर मित्रा के रूप में चमके हैं और उनका रहस्यमय किरदार भी उत्सुकता पैदा करता है |

राजेश शर्मा, रितिका आनंद, रोहित बस्फोरे, अमृता चट्टोपाध्याय की अदाकारी भी उम्दा है और कहानी संभालने में ये सभी अहम किरदार निभाते हैं | जेएल50 की कमज़ोर कड़ी हैं सीरीज़ के वीएफ़एक्स जो की औसत क्वालिटी के हैं | कई दृश्यों में तो वीएफएक्स डिपार्टमेंट का लो बजट साफ़ नज़र आता है और याद आता है अभय देओल का एक इंटरव्यू जिसमे उन्होंने कहा था की सीरीज़ का बजट कम है |

कुल मिलाकर जेएल50 शैलेन्द्र व्यास का एक अनोखा प्रयास है जो भारतीय सिनेमा की साइंस-फिक्शन फील्ड में कुछ नया और रोमांचक पेश करती है | 4 एपिसोड की इस वेब सीरीज़ का हर एपिसोड 30 मिनट का है जिसमे रोमांच कभी कम तो ज़्यादा होता रहता है | कहानी की शुरुआत अअच्छी है मगर जल्द ही धीमी पड़ने से देखने वाले की दिलचस्पी कुछ कम हो जाती है | आखिरी एपिसोड में सीरीज़ इसके सीक्वल की तरफ इशारा करती है जो की जल्द दिख सकता है | अगर साइंस-फिक्शन का शौक रखते हैं तो देख सकते हैं |
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