रहमान (46) ने एक साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, "मैं हमेशा से एक आम इंसान था और आगे भी आम इंसान ही रहूंगा। चाहे कितनी भी शोहरत क्यों न इकट्ठी कर लूं, मेरी अंर्तात्मा नहीं बदलेगी। रुपया आता जाता रहता है, शोहरत आती जाती रहती है। मेरा मानना है कि हर इंसान अपने आप में मशहूर हस्ती है।"
रहमान ने 2009 में दो ऑस्कर पुरस्कार जीतकर नया इतिहास रचा था। वह पहले भारतीय हैं, जिन्हें डेनी बॉयल की फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' के लिए एक साथ दो ऑस्करों से नवाजा गया था।
रहमान के गीत 'जय हो' के लिए उन्हें 52वें ग्रैमी अवार्ड समारोह में दो ग्रैमी अवार्ड भी दिए गए थे।
लेकिन रहमान ने अपनी कामयाबी को सिर पर चढ़ने नहीं दिया। उन्होंेने कहा, "कामयाब होने के लिए विनम्र होना जरूरी है और यह भी महत्वपूर्ण है कि दौलत और शोहरत को सिर पर न चढ़ने दें। कामयाबी महत्वपूर्ण है लेकिन यह हमेशा रचनात्मक नहीं होती। संगीत के प्रति अखंडता और जुनून ही वह कारक हैं, जो आखिरकार मुझे इस ओर खींचते हैं। मेरे लिए यह ईश्वर का आशीर्वाद है।"
रहमान ने अपने करियर की शुरुआत वृत्तचित्र फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों में संगीत देने से की थी। 1992 में फिल्म 'रोजा' में रहमान का दिया संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ और इसके साथ रहमान भी मशहूर और लोकप्रिय हुए। उसके बाद से 'रंगीला', 'ताल', 'दिल से', 'जोधा अकबर', 'स्वदेश', 'रंग दे बसंती', 'रॉकस्टार' और 'रांझना' जैसी फिल्मों में रहमान का दिया संगीत लोगों के बीच खास लोकप्रिय होता आया है।
रहमान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान तब मिली जब एंड्र्यू ल्यॉड वेबर ने ब्रॉडवे के नाटक 'बॉम्बे ड्रीम्ज' में संगीत देने के लिए रहमान को आमंत्रित किया। उसके बाद उन्होंने जे. आर. आर. टॉकींस के नाट्य रूपांतरण 'लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' में संगीत दिया।
रहमान अपनी कामयाबी का श्रेय अपने परिवार को देते हैं, जिसका सहयोग उन्हें हमेशा से मिला।
रहमान कहते हैं, "मेरी पत्नी सायरा बानू और मेरे बच्चे मेरी बुनियाद हैं, जो मुझे हमेशा जमीन से जोड़े रखते हैं। मेरी मां वह इंसान हैं जिन्हें मैं अपनी कामयाबी का श्रेय देता हूं।"
रहमान फिलहाल अपने प्रशंसकों से अपने संगीत दौरे 'रहमानिश्क' के जरिए रू-ब-रू हो रहे हैं।