निर्देशन: समर शेख
अवधि: 2 घंटे 1 मिनट
रेटिंग: **
विद्या बालन अपनी फिल्म 'बॉबी जासूस' से एक बार फिर दर्शकों के सामने हैं। विद्या की ज्यादातर फिल्मों की ही तरह यह फिल्म भी एक महिला केंद्रित फ़िल्म है। लेकिन इस बार खास बात ये है कि फिल्म में विद्या एक जासूस के 12 रूपों में नजर आ रही है, और दूसरी बात कि विद्या ही ऐसी पहली अभिनेत्री हैं, जिन्होंने बड़े पर्दे पर एक जासूस की भूमिका निभाई है। हालाँकि रिलीज से पहले फिल्म का क़ाफी हो हल्ला था लेकिन, फिल्म की शुरुआत उस हिसाब से नहीं हुई। 34% पर मल्टीप्लेक्स में शुरुआत करने वाली यह फिल्म औसत दर्ज़े की ही कही जा सकती है।
फिल्म की कहानी एक 30 वर्षीय ऐसी लड़की बिल्क़िस अहमद उर्फ बॉबी (विद्या बालन) की है, जो पुराने हैदराबाद के मोगुलपुरा की गलियों में पलकर बड़ी हुई है, और जिसका मकसद एक प्रसिद्द जासूस बनकर चली आ रही पुरानी रीतियों को मात देना है। लेकिन उसके इस मकसद और फैंसले में सिर्फ उसके करियर से जुड़ी परेशानियां ही नहीं है, बल्कि उसका रूढ़िवादी परिवार भी एक बाधा है। बॉबी की माँ (सुप्रिया पाठक), बहनें और पिता (राजेंद्र गुप्ता) उसके इस फैंसले से खुश नहीं है। लेकिन उसके इरादे पक्के हैं। अपने इस सपने को साकार करने के लिए वह कई कंपनियों में नौकरी के लिए भी जाती है, लेकिन हर तरफ से उसे निराशा ही हाथ लगती है। इसके बाद वह अपनी खुद की डिटेक्टिव एजेंसी खोलती है। खुद की कंपनी खोलने के बाद बॉबी की मुलाकात होती है एक रहस्यमई व्यक्ति अनीस खान (किरण कुमार)से जो उसे कुछ खोए हुए लोगों को ढूंढने का काम देता है।
हालाँकि इसके बाद अनीस के लिए एक व्यक्ति को तो वह ढूंढ लेती है, लेकिन अनीस खुद उसकी नजरों में चढ़ जाता है और जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाती है, बॉबी अनीस के बारे में जानने में जुट जाती है। क्योंकि अब वह उसका सच जानना चाहती है। अब वह अनीस के पीछे लग जाती है। जिसमे वह कामयाब भी हो जाती है। इसके बाद उसे यह पता चलता है कि अनीस ने इस काम के लिये उसे ही क्यों चुना।
फिल्म में विद्या बालन जैसी अदाकारा जिन्होंने, 'कहानी', 'नो वन किल्ड जेसिका' और 'इश्किया' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से अच्छे-अच्छों के पसीने छुड़ा दिए इस बार 'बॉबी जासूस' की कमजोर कहानी के चलते फिल्म में कुछ ख़ास जादू नहीं दिखा पाई।
फिल्म की कहानी के माध्यम से संयुक्ता चावला शेख ने ना सिर्फ अपने सिनेमाई प्रदर्शन की नवीनता दिखाने की कोशिश की है, बल्कि एक महिला जासूस को फ़िल्मी पर्दे पर उतारकर, एक नया चलन भी शुरू किया है। लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि वह ऐसा कुछ चमत्कार नहीं कर पाए हैं, जैसे की उम्मीद की जा रही थी। हालाँकि फिल्म में, रोमांस, हल्के हास्य, पारिवारिक नाटक, रोमांच जैसे तत्व शामिल हैं, लेकिन ये सभी इतनी सुस्ती से बंधे है कि वह दर्शकों को मनोरंजन से नहीं जोड़ पाते। वहीं विशाल सिन्हा के छायांकन की निश्चित तौर पर सराहना करनी होगी, उन्होंने त्रुटिहीन चालाकी के साथ हैदराबाद के परिवेश पर अच्छी पकड़ बनाई है।
अगर फिल्म में अभिनय की बात करें तो, विद्या ने एक बार फिर से यह साबित किया हैं क़ि उन्हें फिल्म अपने साथ किसी बड़े सितारे के नाम की जरूरत नहीं है। अपनी फिल्मों में मुख्य भूमिकाओं के लिए जानी जाने वाली विद्या ने 'बॉबी जासूस' में एक जासूस की जो भूमिका निभाई है, उसके लिए आप उनकी तारीफ किये बिना रह नहीं पाएँगे। विद्या सच में अपने अभिनय के लिए तारीफ़ की हक़दार हैं।
उनके अलावा फिल्म में सुप्रिया पाठक, तन्वी आज़मी, ज़रीना वहाब, किरण कुमार अर्जन बाजवा ने भी अपने अभिनय का अच्छा योगदान दिया है। लेकिन अगर फिल्म में विद्या के अलावा किसी और के अभिनय को दमदार और खास कह जा सकता है, वह है राजेंद्र गुप्ता का। जिन्होंने विद्या के पिता की भूमिका निभाई है, और उन्होंने इस किरदार में एक पिता के रूप में जान डाल दी है। वहीँ फिल्म के अभिनेता अली फ़ज़ल के पास करने के लिए कुछ ज्यादा नहीँ था।
फिल्म को अगर सरसरी नजर से देखे तो कहा जा सकता है कि अगर फिल्म की कहानी को अगर थोड़ा और बेहतर तरीक़े और सलीके से पेश किया गया होता तो बॉक्स ऑफिस पर फिल्म का भविष्य कुछ और हो सकता था।