निर्देशन: विशाल भारद्वाज
रेटिंग *** 1/2
वैसे तो निर्देशक विशाल भारद्वाज की फिल्म 'हैदर' विलियम शेक्सपियर के दुखद नाटक 'हेमलेट' पर आधारित है। जो एक माँ-बेटे के बीच के जटिल रिश्ते को बयान करती है, लेकिन इसके अलावा भी फिल्म में एक मुद्दा और उठाया गया है, और वह है 90 के दशक में कश्मीर घाटी में फैला आतंकवाद।
फिल्म में एक ऐसे परिवार को दिखाया गया है जो कुछ घरेलु और कुछ आतंकवाद के दंश से टूट कर बिखर चुका है। एक माँ गजाला (तब्बू), एक पिता डॉक्टर साहब (नरेंद्र झा) और एक बेटा हैदर (शाहिद कपूर) एक खुशहाल परिवार है। लेकिन जब इस परिवार पर आतंकवाद और हैदर के चाचा (खुर्रम) की बुरी नजर पड़ती है तो यह परिवार टूट कर बिखर जाता है। हालात ये हो जाते हैं कि माँ बेटा और पिता तीनों अलग हो जाते हैं, जहाँ पिता अपने ही भाई की साजिश और आतंकवाद का शिकार हो जाता है, वहीं अनजान और असहाय माँ और बेटे के बीच गलत फहमी आ जाती है और जिसका कारण है खुर्रम। जिसने गजाला को पाने के लिए अपने ही भाई को मरवा दिया और माँ-बेटे के बीच दरार डाल दी।
वहीं इसी दंश को एक और लड़की है जो झेल रही है और वह है हैदर की प्रेमिका अर्शी (श्रद्धा कपूर) जो उसके साथ घर बसाकर खुशहाल जीवन बिताने के सपने तो देखती है लेकिन इसकी मंजिल और कुछ नहीं सिर्फ मौत ही होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि फिल्म को खूबसूरत कश्मीर की बर्फीली वादियों में फिल्माया गया है, लेकिन ये खूबसूरत वादियां सिर्फ और सिर्फ खून से लाल है। खासकर फिल्म का अंतिम दृश्य उसमें सफ़ेद बर्फ में चारों और सिर्फ लहू ही लहू दिखता है।
अभिनय की बात करे तो यह फिल्म शाहिद के लिए अभी तक उनके सबसे बेहतरीन अभिनय का सबूत है। अभी तक एक रोमांटिक हीरो के तौर पर अभिनय करने वाले शाहिद कपूर इस बार बेहद गंभीर और दमदार भूमिका में नजर आए हैं। कहा जा सकता है कि यह फिल्म उनके अभिनय के लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहेगी। वहीं श्रद्धा कपूर ने भी अच्छा अभिनय करने की भरपूर कोशिश की है। वहीं तब्बू और केके मेनन ने एक ग्रे किरदार को बेहद सहजता से दर्शाया है। जो ना तो सामने से विरोध करते हैं लेकिन वह एक बाप के वियोग में जलते युवा के लिए छुपे हुए दुश्मनों का काम करते हैं। केके मेनन बेहद उम्दा कलाकार हैं। एक माँ के रूप में तब्बू ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। वहीं इरफ़ान खान ने गजब की परफॉर्मेंस दी है। इरफ़ान खान बेहद शानदार हैं। इनके अलावा कुलभूषण खरबंदा, आशीष विद्यार्थी, आमिर बशीर बेहद कम फूटेज के बावजूद छाप छोड़ने में कामयाब हैं।