Criminal Justice: Behind Closed Doors Review: कहानी कमज़ोर, रफ़्तार धीमी मगर पंकज त्रिपाठी व कीर्ति कुल्हारी हैं ज़ोरदार

Criminal Justice: Behind Closed Doors Review: कहानी कमज़ोर, रफ़्तार धीमी मगर पंकज त्रिपाठी व कीर्ति कुल्हारी हैं ज़ोरदार
कास्ट: पंकज त्रिपाठी, कीर्ति कुल्हारी, अनुप्रिया गोएंका, जीशु सेनगुप्ता, दीप्ति नवल, मीता वशिष्ट, शिल्पा शुक्ला

निर्देशक: रोहन सिप्पी-अर्जुन मुख़र्जी

प्लेटफार्म: डिज़नी प्लस हॉटस्टार

कई बार ऐसा भी होता है की पति - पत्नी के रिश्ते के बीच कोई तीसरा नहीं बल्कि पति-पत्नी में से ही कोई एक बीच में आ जाता है| एक, दूसरे पर हावी होने लगता है और धीरे-धीरे दो नहीं बल्कि एक ही बचता है| ऐसी ही कुछ कहानी है डिज़नी प्लस हॉटस्टार की वेब सीरीज़ "क्रिमिनल जस्टिस: बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स" की| क्रिमिनल जस्टिस के पहले सीज़न के लिए हर तरफ से तारीफों के पुल बांध गए थे तो चलिए डालें नज़र क्रिमिनल जस्टिस 2 पर की आखिर सीज़न 2 पहले सीज़न जितना दमदार है या नहीं|

इस सीज़न की कहानी है अनु चंद्रा (कीर्ति कुल्हारी) की जो की बॉम्बे हाई कोर्ट के सबसे बड़े और रुतबेदार वकीलों में से एक विक्रम चंद्रा (जीशु सेनगुप्ता) की पत्नी है| विक्रम अनु को बंद दरवाजों के पीछे प्रताड़ित करता है, कई बार उसके साथ जबरन सम्बन्ध भी बनाता है, और वो सब कुछ इस रिश्ते में है जो की किसी भी पति-पत्नी के बीच नहीं होना चाहिए| अन्दर ही अन्दर घुट रही अनु एक दिन विक्रम के पेट में चाक़ू घोंपकर उसे जीवन से और खुद को प्रताड़ना से मुक्त कर देती है|

मामला पुलिस के पास जाता है और फिर जाता है अदालत में जहां अनु अपना जुर्म भी क़ुबूल कर लेती है| मामला हाई प्रोफाइल है और हर किसी का यही मानना है की ये एक ओपन एंड शट केस है तो कोई भी इसे हाथ में लेकर राज़ी नहीं है| इसके बाद केस लड़ने के लिए स्क्रीन पर एंट्री होती है वकील माधव मिश्रा (पंकज त्रिपाठी) की जिनकी नई-नई शादी हुई है और वे सुहागरात से पहले ही अपनी पत्नी को छोड़ कर मुंबई के लिए निकल पड़ता है| अब अनु इस मामले में दोषी साबित हो कर जेल जाएगी या माधव मिश्रा उन्हें बचाने में कामयाब रहेंगे ये आपको पता चलेगा जब आप सीरीज़ देखेंगे|


8 एपिसोड की इस सीरीज़ में कहानी और किरदारों के परतें धीरे-धीरे खुलती नज़र आती हैं| कहानी शुरुआत में इस तरह पेश की गई है की दर्शक के मन सवाल उठता है की शायद अनु बेक़सूर है| रोहन सिप्पी और अर्जुन मुख़र्जी की ये सीरीज़ अनु की चुप्पी और वो बेक़सूर है या नहीं इसी सवाल के इर्द-गिर्द अपना ताना-बाना बन कर आगे बढती है जो मन में सस्पेंस पैदा करता है|

कहानी की बात करें तो ये शुरुआत में कुछ बिखरी हुई नज़र आती है और पटरी पर पहुँचने में इसे 4 एपिसोड का समय लगता है| चौथे एपिसोड के बाद धीरे-धीरे कहानी अपना रूप लेती है और दर्शक की दिलचस्पी इसमें बनती है| तो अगर आप एक तेज़-तर्रार सस्पेंस-थ्रिलर की उम्मीद कर रहे थे तो वो आपको यहाँ नहीं मिलेगी उलटा इसे देखने के लिए सब्र की काफी ज़रुरत है जिसका फल आपको सीरीज़ के अंत में मिलता है|

सीरीज़ की पटकथा ढीली है क्यूंकि कई दृश्यों में स्क्रीन पर जो चल रहा है वो बोर करने लगता है और उसे फ़ास्ट फॉरवर्ड करने का मन करता है| कहानी में कॉमेडी का भी हल्का सा तड़का है जो माधव मिश्रा और उनकी पत्नी लगाते हुए नज़र आते हैं| इस नए नवेले जोड़े को स्क्रीन पर नोक-झोंक करते हुए देखना मज़ेदार लगता है|


बात करें परफॉरमेंस की तो पंकज त्रिपाठी माधव मिश्र के किरदार में चुलबुले और चार्मिंग लगे हैं| उन्होंने अपने किरदार को मज़ेदार बनाया है जिसे हर फ्रेम में देखना मनोरंजक है| एक इमोशनल और गहन किरदार में कीर्ति कुल्हारी भी दर्शक पर अपनी छाप छोड़ती हैं और सीरीज़ ख़त्म होने के बाद भी उनका किरदार आपकी सोच में काफी समय तक रहता है|

सीरीज़ की बाकी कास्ट दीप्ति नवल, तीर्था मुरबाडकर, कल्याणी मुले, अजीत सिंह पलावट, जीशु सेनगुप्ता, जीशु सेनगुप्ता, शिल्पा शुक्ला और मीता वशिष्ट ने भी अपने किरदारों को बढ़िया पिरोया है| सीरीज के डायलॉग्स औसत हैं जिन्हें और बेहतर बनाया जा सकता था और साथ एडिटिंग डिपार्टमेंट भी हर एपिसोड को कम से कम 5 मिनट छोटा कर सकता था या और ज्यादा भी | कई एपिसोड्स के विज़ुअल इफेक्ट्स भी बढ़िया नहीं है|

तो कुल मिलाकर, क्रिमिनल जस्टिस: बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स एक धीमी पर दिलचस्प कहानी है जो धीरे-धीरे आपको बांधती है| हालांकि इसकी कहानी परफेक्ट नहीं है, कुछ कमियाँ हैं, रफ़्तार भी धीमी है लेकिन इसके ज़रिये निर्माताओं ने हमारे समाज में औरतों से जुडी कुछ ज़रूरी बातें दर्शाने की कोशिश की है और सीरीज़ का अंत भी मसालेदार है| एक आम थ्रिलर वाली उम्मीद न रखे बिना इसे देखें तो शायद आपको पसंद आए, बाकी पंकज त्रिपाठी के लिए तो एक बार देख ही सकते हैं|

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