सब्जी ले आने को घर से चलता है जब घरवाला किस दुकान जाऊँ असमंजस में है वह भोला भाला, दो हजार का नोट देख कर उसको सब गाली देंगे और इसी असमंजस में वह पहुँच गया फ़िर मधुशाला; लाल गुलाबी नोट देख कर डरता है लेने वाला सोच रहा है दिल ही दिल में नहीं चलेगा यह साला, बिना दूध की चाय हमेशा से उसको कड़वी लगती यही सोच कर पहुँच गया वह सुबह सवेरे मधुशाला; थके हुए क़दमों से देखो आया सोहन का साला पीछे पीछे चलीं आ रहीं जाकिर की बूढ़ी खाला, रोज बैंक से डंडे खाकर लिए व्यथित मन लौट रहे कार्ड स्वाईप करने वाले तो घर ले आते मधुशाला; पैसा लेकर राम भरोसे घूम रहे बन मतवाला रुपए उसके पास देख कर बता रहे सब धन काला, खाद डालनी थी खेतों में राम भरोसे चिंतित हैं भक्त कह रहे छोड़ो ये सब हो आओ तुम मधुशाला, खुली हुई है मधुशाला; इन थोड़े नोटों से कितना प्यार करूँ पी लूं हाला आने के ही साथ आ गया है इनको लेने वाला, पाँच हजार मकान किराया लेने को आईं आंटी है उधार अब पंद्रह दिन से मेरी जीवन मधुशाला; यम बनकर बाज़ार आएगा हफ्ता जो आने वाला फिर न होश में आ पाएगा अर्थतंत्र पी कर हाला, यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है ज़रा संभल कर पीना इसको यह है देशी मधुशाला। |