रामलालजी को किस्से कहानियां सुनने का बड़ा शौक था। वे बुला बुला कर दूसरों के किस्सों को बड़े चाव से सुनते, लेकिन आखिर में सुनाने वाले से एक ही बात कहते - `ये सच नहीं हो सकता ।।!` यह सुनते ही कहानी किस्सा सुनाने वाले का पूरा मजा किरकिरा हो जाता। धीरे-धीरे गाँववाले उनसे कतराने लगे और उनसे बात करने से बचने लगे। रामलाल जी ठहरे कहानी किस्सों के तलबी ! किस्सा सुने बिना उनका खाना हजम होना बंद हो गया। एक दिन उनके घर के दरवाजे से स्कूल का मास्टर उनसे बचने की कोशिश करता हुआ जल्दी जल्दी जा रहा था कि उन्होंने देख लिया। फिर तो रामलाल जी लगे गिडगिडाने - `यार मास्टर, कुछ तो सुनाते जाओ, यहाँ सबने मुझसे बोलना बंद कर दिया है।। ऐसे तो मैं पागल हो जाऊँगा ।।` बहुत अनुनय-विनय के बाद मास्टर जी एक शर्त पर किस्सा सुनाने को राजी हुए। मास्टर जी बोले - `मैं तुम्हें एक किस्सा सुनाऊँगा, पर यदि तुमने आखिर में कहा कि 'ये सच नहीं हो सकता' तो तुम्हें मुझे एक हजार रुपये देने होंगे...` रामलाल जी ने फ़ौरन शर्त मान ली और उतावले होकर बोले - `नहीं कहूँगा, बिलकुल नहीं कहूँगा ... तुम सुनाओ !` मास्टर जी ने किस्सा शुरू किया - `एक बार चीन में एक बड़ा दयालु राजा था। एक दिन वह नगर भ्रमण के लिए निकला। अभी वह पालकी में बैठने ही वाला था कि अचानक एक चिड़िया ने उसकी पोशाक पर बीट कर दी। राजा ने मुस्कुरा कर चिड़िया की ओर देखा, फिर अपने नौकर से नई पोशाक घर से मंगवा कर पहनी और गन्दी पोशाक उसके हाथ में देकर पालकी में बैठकर चल दिया। थोड़ी दूर जाकर राजा ने अपनी तलवार से पालकी का पर्दा खोलकर देखा कि कहाँ आ गए हैं, तभी चिड़िया फिर उडती हुई आई और तलवार पर बीट करके चली गई। राजा ने चिड़िया पर क्रोध न करते हुए फिर नौकर को भेजा और घर से नई तलवार मंगवा ली। गन्दी तलवार नौकर के हाथ में थमाई और आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर जाकर राजा ने यह देखने के लिए कि कहाँ तक आ गए हैं, अपना सिर पालकी से बाहर निकाला कि तभी चिड़िया फिर उडती हुई आई और राजा के सिर पर बीट करके उड़ गई। राजा ने फिर भी चिड़िया पर क्रोध नहीं किया और नौकर को घर से नया सिर लाने भेज दिया। नौकर नया सिर लेकर आया तो उसने तलवार से अपना गन्दा सिर काटकर नौकर को पकड़ा दिया और नया सिर लगा कर आगे चल दिया ......।` `अरे यार क्या मुझे बेवकूफ समझ रहे हो ...। ये सच नहीं हो सकता !`, रामलाल जी बोले। `बिलकुल सच नहीं हो सकता ...`, मास्टर जी ने विजेता भाव से कहा, `लेकिन रामलालजी, मैंने पहले ही कह दिया था कि आप 'ये सच नहीं हो सकता' नहीं बोलेंगे ...। लाइए शर्त के एक हजार रुपये ...` कुनमुनाते हुए रामलाल जी ने मास्टर जी के हाथ में एक हजार रुपये थमाए और उस दिन के बाद फिर कभी किसी से किस्से-कहानी सुनाने के लिए नहीं कहा। |