पत्नी हमेशा पत्नी ही रहती है!

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    मृत्युशय्या पर पड़े जैकब ने अपनी पत्नी सारा को बुलवाया और उससे कहा,

    "प्रिय सारा, मैं अपनी वसीयत करना चाहता हूं। मैं अपने सबसे बड़े बेटे अब्राहम को आधी संपदा देना चाहता हूं। वह बहुत धर्मनिष्ठ इंसान है।"

    "अरे, नहीं, जैकब! अब्राहम को और अधिक संपत्ति की कोई ज़रूरत नहीं है। उसका अपना व्यवसाय है और वह हमारे धर्म को बहुत गहराई से मानता है। तुम जो भी उसे देना चाहते हो वह इसहाक को दे दो, वह ईश्वर के अस्तित्व को लेकर हमेशा पशोपेश में रहता है और उसे दुनिया में सही तरीके से जीने के ढंग सीखने बाकी हैं।"

    "ठीक है। तुम कहती हो तो मैं इसहाक को दे दूंगा। फिर अब्राहम को मैं अपना हिस्सा दे देता हूं।"

    "मैंने कहा न, प्रिय जैकब, अब्राहम को वाकई किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। तुम्हारा हिस्सा मैं रख लूंगी और उसमें से वक्त-ज़रूरत पर बच्चों की मदद कर दिया करूंगी।"

    "तुम ठीक कहती हो, सारा। अब हम अपनी इज़राइल वाली जमीन की बात कर लेते हैं। मुझे लगता है कि इसे डेबोरा को देना चाहिए।"

    "डेबोरा को? तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? उसके पास पहले से ही इज़राइल में जमीन है। जमीन-जायदाद के पचड़ों में पड़कर उसकी घर-गृहस्थी चौपट नहीं हो जाएगी? मुझे लगता है कि हमारी बेटी मिशेल की हालत वास्तव में मदद करने लायक है।"

    जैकब जैसे-तैसे अपनी ताकत बटोरकर बिस्तर से उठा और झुंझलाते हुए बोला,

    "देखो सारा, तुमने उम्र भर बहुत अच्छी पत्नी और आदर्श मां का फर्ज निभाया। मैं जानता हूं कि तुम वाकई हमारे बच्चों की भलाई चाहती हो, लेकिन मुझे बताओ कि मर कौन रहा है, तुम या मैं?"
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