ख़ुशी की कविता या कुछ और?

  •  

    मन था उदास... बड़ी हसरतों से निगाहें दरवाजे पर थीं... सहसा कुछ खटका सा हुआ।
    उल्लसित मन से मैं दरवाजे की ओर बढ़ी कि लेकिन यह क्या।
    वह मन का भ्रम था; दिल बैठने सा लगा, बुझे मन से लौट ही रही थी... कि सहसा एक आवाज आई
    "भाभी"!

    मन की वीणा झंकृत हो उठी।
    मन मयूर नाच उठा।
    यह कोई स्वप्न नहीं तुम साक्षात पधार चुकी थीं।
    धन्य हो भगवन धन्य अब मन नहीं था उदास, माहौल हो गया था ख़ुशगवार, मन मृदंग के बज रहे थे तार, वह आ चुकी थी। सचमुच वो आ चुकी थी।

    यह कविता नहीं... कामवाली बाई के चार दिन की छुट्टी के बाद काम पर आने की ख़ुशी में एक गृहिणी के हृदय से निकले उदगार हैं। चाहें तो फिर से पढ़ लें।
  • सही खेल गया! एक बार बैंक मैनेजर अपने बीवी बच्चों के साथ होटल में गये।
    बैंक मैनेजर: खाने में क्या क्या है?
    वेटर: जी मलाई कोफ्ता...
  • कबीर के आधुनिक दोहे! यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होते:
    नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात;
    बेटा कहता बाप से...
  • तुम्हें कैसे अंडे पसंद है? संता और जीतो की शादी हो गयी, संता ने सोचा ये एक नए ज़माने की शादी है इसलिए दोनों की जिम्मेवारियां बराबर होनी चाहिए...
  • अंग्रेजी की कहानी! पति: क्या हुआ? ये घर के बाहर इतनी भीड़ क्यों लगी है?
    पत्नी: कुछ नहीं, मैंने पड़ोसियों से कहा कि...
  • अनुष्का-विराट की शादी के बाद! अब विराट का भी होगा जीना हराम जब देने होंगे अनुष्का के कैसे कैसे प्रश्नों के जवाब:
    अनुष्का: यह मैच खेलने लंदन क्यों जा रहे हो?...