एक शख़्स ने दो निकाह किये थे और वो अपनी दोनों बीवीयों से बहुत प्यार करता था। दोनों ही के साथ बड़ा इंसाफ़ का मामला भी रखता था। तक़दीर का फ़ैसला देखिए कि दोनों ही बीवियों का एक ही वक़्त में इंतक़ाल हो गया। शौहर ने इंसाफ़ के तक़ाज़े से ये चाहा कि दोनों को एक ही वक़्त और एक ही साथ ग़ुस्ल दिया जाए (नहलाया जाये)। इसलिए उसने ग़ुस्ल देने वालियाँ दो औरतें बुलवाईं ताकि एक ही वक़्त में दोनों को एक साथ ग़ुस्ल दिया जाए। फिर दफ़न के लिये घर से एक ही वक़्त में एक साथ निकालने का तय किया। इत्तेफ़ाक़ से उस घर में एक ही दरवाज़ा था। शौहर ने क्योंकि एक ही वक़्त में दोनों बीवियों का जनाज़ा निकालने का तय किया हुआ था इसलिए आनन-फानन में तुरन्त ही एक और नया दरवाज़ा बनवाने का फ़ैसला किया। दरवाज़ा बनाने वाला बुलाया गया, और दूसरा दरवाज़ा बनवा कर एक ही वक़्त में दोनों के जनाजो को घर से निकाला। दफ़न कर के जब घर सब वापस आये तो सबने उसके बीवीयों के साथ रहन-सहन की तारीफ की और उसने अपने इंसाफ़ पर अल्लाह का शुक्र अदा किया कि उसने मुझे सही इंसाफ़ करने की तौफ़ीक़ दी। रात में एक बीवी को शौहर ने अचानक ख़्वाब में देखा। वो बड़ी ही ग़मज़दा आवाज़ में कह रही थी, "मैं आप से नाराज़ हूँ। अल्लाह आप को माफ़ नहीं करेगा।" शौहर ने पूछा, "लेकिन क्यों? ख़ुदा की बंदी आखिर क्या हुआ?" इस पर उसकी बीवी ने जवाब दिया, "आपने अपनी दूसरी बीवी को नये दरवाज़े से निकाला और मुझे पुराने दरवाज़े से।" |