हाथ जोड़ कर कीजिये,पत्नी जी का ध्यान। घर में खुशहाली रहे ,हो जाये कल्यान।। घरवाली को नमन कर, माला लेकर हाथ। मुख से पत्नी-वन्दना बोलो मेरे साथ।। जय पत्नी देवी कल्यानी। माया तेरी ना पहचानी।। तुमसे सारे देवता हारे। डर से थर-थर कांपें सारे।। नहीं चरित्र तुम्हरा कोई जाना। नर क्या ईश्वर ना पहचाना।। अपरम्पार तुम्हारी माया। कोई इसका पार न पाया।। लगो देखने में तुम गुड़िया। हो लेकिन आफत की पुड़िया।। हे मेरे बच्चों की माता। तुम हो मेरी भाग्यविधाता।। है बेलन हथियार तुम्हारा। जब चाहा सिर पर दे मारा।। ऐसी तेरी निकले बोली। जैसे हो बंदूक की गोली।। हम तुमसे डरते हैं ऐसे। चोर पुलिस से डरता जैसे।। ऐसा है आतंक तुम्हारा। बिच्छू जैसा डंक तुम्हारा।। करे पती जो पत्नी-सेवा। मिलती उसको सच्ची मेवा।। पत्नी-वन्दना जो कोई गावे। जीवन में कोई कष्ट न पावे।। प्रभु दीक्षित कर पत्नी-वन्दन। पत्नी का कर लो अभिनन्दन।। वन्दहु पत्नी मुख-कमल,गुणअवगुण की खान। मिले नहीं बिन आपके पतियों को सम्मान।। ।।बोलो पत्नी रानी की जय।। |
एक दंपत्ति की शादी को साठ वर्ष हो चुके थे। उनकी आपसी समझ इतनी अच्छी थी कि इन साठ वर्षों में उनमें कभी झगड़ा तक नहीं हुआ। वे एक दूजे से कभी कुछ भी नहीं छिपाते थे। हां, पत्नी के पास उसके मायके से लाया हुआ एक डिब्बा था जो उसने अपने पति के सामने कभी नहीं खोला था। उस डिब्बे में क्या है वह नहीं जानता था। कभी उसने जानने की कोशिश भी की तो पत्नी ने यह कह कर टाल दिया कि सही समय आने पर बता दूंगी। आखिर एक दिन बुढि़या बहुत बीमार हो गई और उसके बचने की आशा न रही। उसके पति को तभी ख्याल आया कि उस डिब्बे का रहस्य जाना जाये। बुढि़या बताने को राजी हो गई। पति ने जब उस डिब्बे को खोला तो उसमें हाथ से बुने हुये दो रूमाल और 50,000 रूपये निकले। उसने पत्नी से पूछा, "यह सब क्या है?" पत्नी ने बताया, "जब उसकी शादी हुई थी तो उसकी दादी ने उससे कहा था कि ससुराल में कभी किसी से झगड़ना नहीं। यदि कभी किसी पर क्रोध आये तो अपने हाथ से एक रूमाल बुनना और इस डिब्बे में रखना।" बूढ़े की आंखों में यह सोचकर खुशी के मारे आंसू आ गये कि उसकी पत्नी को साठ वर्षों के लम्बे वैवाहिक जीवन के दौरान सिर्फ दो बार ही क्रोध आया था। उसे अपनी पत्नी पर सचमुच गर्व हुआ। खुद को संभाल कर उसने रूपयों के बारे में पूछा, "इतनी बड़ी रकम तो मैंने तुम्हे कभी दी ही नहीं थी, फिर ये कहां से आये?" "रूपये! वे तो मैंने रूमाल बेच बेच कर इकठ्ठे किये हैं।" पत्नी ने मासूमियत से जवाब दिया। |
एक औरत का पति काफी समय से कोमा में था। उसे कभी होश आता और कभी वो कोमा में चला जाता पर वो औरत हमेशा अपने पति के साथ ही रही। कभी भी उसे नहीं छोड़ा। एक दिन आदमी को होश आया और उसने अपनी पत्नी को पास बुलाने का इशारा किया। पत्नी अपने पति के पास गयी। पति ने भरी हुई आँखों से उसे कहा, "तुम्हें पता है न तुम हमेशा मेरे साथ रही हो। मेरे हर दुःख के समय तुम मेरे पास थी। जब मुझे नौकरी से निकाला गया तो उस समय तुम मेरे साथ थी। जब मेरा कारोबार डूब गया तब भी तुम साथ थी। जब हमारा घर नीलाम हुआ तब भी तुम साथ थी। फिर अब जब मेरा एक्सीडेंट हुआ और मेरी यह हालत हो गयी तब भी तुम मेरे साथ ही थी। अब बस मैं तुम्हें यही कहना चाहता हूँ कि अब तुम मुझे छोड़ कर चली जाओ, क्योंकि शायद तुम्हारे जाने से मेरा अच्छा समय आ जाये।" |
मेरी प्यारी बेगम, सवाल कुछ भी हो, जवाब तुम ही हो। रास्ता कोई भी हो, मंजिल तुम ही हो। दुःख कितना ही हो, ख़ुशी तुम ही हो। अरमान कितना ही हो, आरजू तुम ही हो। गुस्सा जितना भी हो, प्यार तुम ही हो। ख्वाब कोई भी हो, ताबीर तुम ही हो। यानी ऐसा समझो कि सारे फसाद की जड़ तुम हो और सिर्फ तुम ही हो। |